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प्राकृत साहित्य का इतिहास
दंडकप्रकरण इसे विचारषट्त्रिंशिका भी कहा गया है। इसके कर्ता गजसार मुनि हैं।
लघुसंघयणी इसे जंबूद्वीपसंग्रहणी भी कहते हैं। इसके कर्ता बृहद्च्छीय हरिभद्रसूरि हैं जिन्होंने ३० गाथाओं में जंबूद्वीप का वर्णन किया है।
बृहत्संग्रहणी इसके कर्ता जिनभद्रगणि श्रमाश्रमण' हैं। मलयगिरि, शालिभद्र, जिनवल्लभ आदि ने इस पर टीकायें लिखी हैं। जैन आचार्यों ने और भी संग्रहणियों की रचना की है, लेकिन औरों की अपेक्षा बड़ी होने से इसे बृहत्संग्रहणी कहा गया है। चार गति के जीवों की स्थिति आदि का संग्रह होने से इसे संग्रहणी कहते हैं।
बृहत्क्षेत्रसमास यह जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की कृति है। इसे समयक्षेत्र- . समास अथवा क्षेत्रसमासप्रकरण भी कहा गया है। आचार्य मलयगिरि ने इस पर वृत्ति लिखी है। अन्य आचार्यों ने भी इस पर टीकायें लिखी हैं । इस ग्रंथ में जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र,
१. आस्मानंद जैन सभा, भावनगर की ओर से वि० सं० १९७३ में प्रकाशित ।
२. बृहत्संग्रहणी और तिलोयपण्णत्ति की समान मान्यताओं के किए देखिए तिलोय पण्णत्ति की प्रस्तावना, पृ०७४ ।
३. जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर की ओर से वि० सं० १९७७ में प्रकाशित।