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ફ૨૨ प्राकृत साहित्य का इतिहास
बृहत्नयचक्र इसका वास्तविक नाम व्वसहावपयास (द्रव्यस्वभावप्रकाश) है जिसमें द्रव्य, गुण, पर्याय, दर्शन, ज्ञान और चरित्र आदि विषयों का वर्णन है। यह एक संग्रह-ग्रंथ है जो ४२३ गाथाओं में पूर्ण हुआ है | ग्रंथ के अन्त में दी हुई गाथाओं से पता लगता है कि व्वसहायपयास नाम का कोई ग्रंथ दोहा छन्दों में बनाया हुआ था, उसी को माइल्लधवल ने गाथाओं में लिखा । देवसेन योगी के चरणों के प्रसाद से इस ग्रंथ की रचना की गई है । गाथाओं के संग्रहकर्ता माइलधवल ने नयचक्र के कर्ता गुरु देवसेन को नमस्कार किया है। माइल्लधवल ने नयचक्र को अपने प्रस्तुत ग्रंथ में गर्मित कर लिया है । इस ग्रंथ में पीठिका, गुण, पर्याय, द्रव्यसामान्य, पंचास्तिकाय, पदार्थ, प्रमाण, नय, निक्षेप, दर्शन, ज्ञान, सरागचारित्र, वीतरागचारित्र और निश्चयचारित्र नाम के अधिकारों में विषय का प्रतिपादन किया गया है।
ज्ञानसार ज्ञानसार के कर्ता पद्मसिंह मुनि हैं, वि० सं० १०८६ (ईसवी सन् १०२६ ) में उन्होंने इस लघु ग्रन्थ की रचना की है। इसमें ६३ गाथायें हैं जिनमें योगी, गुरु, ध्यान आदि का स्वरूप बताया गया है।
वसुनन्दिश्रावकाचार वसुनन्दिश्रावकाचार के कर्ता आचार्य वसुनन्दि हैं जिनका समय ईसवी सन की १२वीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना जाता
१. माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला में सन् १९२० में प्रकाशित नयचक्रसंग्रह में संगृहीत ।
२. माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला में तत्वानुशासनादिसंग्रह के अन्तर्गत वि० सं० १९७७ में बम्बई से प्रकाशित ।
३. पंडित हीरालाल जैन द्वारा संपादित; भारतीय ज्ञानपीठ, काशी द्वारा सन् १९५२ में प्रकाशित ।