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उत्सूत्रखंडन
३३३ करण, बीजायतनिराकरण और पाशचन्द्रमतनिराकरण नाम के विश्रामों द्वारा अन्य मतों का खंडन किया गया है।
उत्सूत्रखंडन धर्मसागर उपाध्याय की यह दूसरी रचना है। जिसे उन्होंने जिनदत्तसूरि गुरु के उपदेश से लिखा था। इसमें स्त्री को पूजा का निषेध, जिनभवन में नर्तकी नचाने का निषेध, मासकल्पविहार, मालारोपणअधिकार, पटलाधिकार, चामुंडा आदि की आराधना तथा पंचनदी की साधना में अदोष आदि विषयों का वर्णन है।
युक्तिप्रबोधनाटक __ यह खंडन-मंडन का ग्रंथ है । मेघविजय महोपाध्याय ने विक्रम संवत् की १८वीं शताब्दी में इसकी रचना की है। इसमें २५ गाथाएँ हैं, जिन पर मेघविजय की स्वोपज्ञ टीका है। इसमें विक्रम संवत् १६८० में आविर्भूत वाणारसीय (बनारसीदास) दिगम्बर मत का खंडन किया है। बनारसीदास के साथी रूपचन्द, चतुर्भुज, भगवतीदास, कुमारपाल और धर्मदास का यहाँ उल्लेख है। दिगम्बर और श्वेताम्बरों के ८४ मतभेदों का यहाँ विवेचन है।
(ग)सिद्धान्त
जीवसमास इसकी रचना पूर्वधारियों द्वारा की गई है। ज्योतिष्करंडक की भाँति जैन आगमों की वलभी वाचना का अनुसरण करके
१. जिनदत्तसूरि ज्ञानभांडागार, गोपीपुरा, सूरत की ओर से सन् १९३३ में प्रकाशित।
२. ऋषभदास केशरीमल श्वेताम्बर संस्था, रतलाम की ओर से ईसवी सन् १९२८ में प्रकाशित ।
३. आगमोदय समिति, भावनगर की ओर से सन् १९२७ में प्रकाशित ।