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२९४ प्राकृत साहित्य का इतिहास
प्रस्तुत ग्रन्थ सामान्यलोक, नारकलोक, भवनवासीलोक, मनुष्यलोक, तिर्यकलोक, व्यन्तरलोक, ज्योतिर्लोक, देवलोक और सिद्धलोक नामक नौ महाधिकारों में विभाजित है। मुख्यरूप से इन अधिकारों में भूगोल और खगोल का वर्णन है; प्रसंगवश जैन-सिद्धांत, पुराण और इतिहास आदि पर भी प्रकाश डाला गया है। प्रथम महाधिकार में २८३ गाथायें और ३ गद्यभाग हैं। क्षेत्रमंगल के उदाहरण में पावा, ऊर्जयन्त और चंपा आदि तीर्थों का उल्लेख है। अठारह श्रेणियों में हस्ति, तुरग, रथ
और इनके अधिपति, सेनापति, पदाति, श्रेष्ठी, दंडपति, शुद्ध, क्षत्रिय, वैश्य, महत्तर, प्रवर, गणराज, मन्त्री, तलवर (कोतवाल), पुरोहित, अमात्य और महामात्य के नाम गिनाये हैं । अर्थागम के कर्ता महावीर भगवान् के शरीर आदि का वर्णन करते हुए १८ प्रकार की महाभाषा और ७०० क्षुद्र भाषाओं का उल्लेख है | राजगृह में विपुल, ऋषिशैल, वैभार, छिन्न और पांडु नाम के पाँच' शैलों का उल्लेख है। त्रिलोक की मोटाई, चौड़ाई और ऊँचाई का वर्णन यहाँ दृष्टिवाद नामक सूत्र के आधार से किया है। दूसरे महाधिकार में ३६७ गाथायें हैं जिनमें नरकलोक के स्वरूप का वर्णन है। तीसरे महाधिकार में २४३ गाथायें हैं जिनमें भवनवासियों के लोक का स्वरूप बताया है। भवनवासी देवों के प्रासादों में जन्मशाला, अभिषेकशाला, भूषणशाला, मैथुनशाला, परिचर्यागृह (ओलग्गशाला) और मंत्रशाला आदि शालाओं, तथा सामान्यगृह, गर्भगृह, कदलीगृह, चित्रगृह, आसनगृह,
हीरालाल जैन ने तिलोयपण्णत्ति के विषय आदि की श्वेताम्बर आचार्य जिनभद्भगणि समाश्रमण के बृहत्क्षेत्रसमास और बृहत्संग्रहणी तथा नेमिचन्द्र के प्रवचनसारोद्धार के विषय आदि के साथ तुलना की है।
१. बौद्धों के सुत्तनिपात की अट्ठकथा (२, पृष्ठ ३८२ ) में पण्डव, गिज्झकूट, वेभार, इसिगिलि और वेपुल्ल नाम के पाँच पर्वतों का उल्लेख है। महाभारत ( २, २१, २) में वैहार वाराह, ऋषभ ऋषिगिरि और चैत्यक का उल्लेख है।