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भगवतीआराधना
३०३ को संस्कृत दशभक्ति और कुन्दकुन्द को प्राकृत दशभक्ति का रचयिता माना है। दशभक्ति का आरम्भ पंचणमोयार, मंगलसुत्त, लोगुत्तमासुत्त, सरणसुत्त, और सामाइयसुत्त से होता है। तीर्थंकरभक्ति में ८ गाथाओं में २४ तीर्थकारों को नमस्कार किया है। इसके बाद प्रतिक्रमण और आलोचना के सूत्र हैं। सिद्धभक्ति में सिद्धों और श्रुतभक्ति में द्वादशांग श्रुत को नमस्कार किया गया है। चारित्रभक्ति में सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसांपराय और यथाख्यातचारित्र नाम के पाँच चारित्रों, तथा मुनियों के मूलगुणों और उत्तरगुणों का उल्लेख है। योगिभक्ति में अनगारों का स्तवन है ; उनकी ऋद्धियों का वर्णन है। आचार्यभक्ति में आचार्यों की स्तुति है। निर्वाणभक्ति में अष्टापद, चंपा, ऊर्जयन्त, पावा, सम्मेदशिखर, गजपंथ, शत्रुजय, तुंगीगिरि, सुवर्णगिरि, रेवातट, सिद्धिवरकूट, चूलगिरि, द्रोणगिरि, अष्टापद, मेढ़गिरि, कुंथलगिरि, कोटिशिला, रेसिंदगिरि, पोदनपुर, हस्तिनापुर, वाराणसी, मथुरा, अहिछत्र, श्रीपुर, चन्द्रगुहा' आदि तीर्थस्थानों का उल्लेख है। इन स्थानों से अनेक ऋषि-मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया। पंचगुरुभक्ति में पञ्च परमेष्ठियों की स्तुति है। शेष भक्तियों में नन्दीश्वरभक्ति और शान्तिभक्ति के नाम आते हैं ।
__ भगवतीआराधना भागवतीआराधना अथवा आराधना दिगम्बर जैन सम्प्रदाय १. इन तीर्थों में बहुत से तीर्थस्थान अर्वाचीन हैं।
२. नवीन महावीरकीर्तन ( 'सेठीबन्धु' द्वारा वीर पुस्तकमन्दिर, महावीर जी, हिण्डौल, राजस्थान से सन् १९५७ में प्रकाशित) में पृष्ठ १८८-९ पर निन्वुइकडं (निर्वाणकाण्ड) और अइसइखित्तकंडं (अतिशयक्षेत्रकांड ) छपे हैं। इनमें उन मुनियों की महिमा का बखान है जिन्होंने अष्टापद आदि पुनीत क्षेत्रों से निर्वाण प्राप्त किया। ___३. आराधनासम्बन्धी प्राकृत में और भी ग्रन्थ लिखे गये हैं, जैसे सोमसूरि का आराधनापर्यन्त, आराधनापंचक, अभयदेवसूरि का आरा