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२५२ प्राकृत साहित्य का इतिहास देश में मामा की लड़की से, गोल्ल देश में भगिनी से तथा विप्र लोगों में विमाता (माता की सौत ) से विवाह करने का रिवाज प्रचलित था।
आवश्यकचूर्णी की कुछ लौकिक कथायें यहाँ दी जाती हैं
(१) किसी ब्राह्मणी के तीन कन्यायें थीं। वह सोचा करती कि विवाह करके ये कैसे सुखी बनेंगी । अपनी कन्याओं को उसने सिखा दिया कि विवाह के पश्चात् प्रथम दर्शन में तुम पादप्रहार से पति का स्वागत करना | पहले सबसे जेठी कन्या ने अपनी माँ के आदेश का पालन किया । लात खाकर उसका पति अपनी प्रिया का पैर दबाते हुए कहने लगा-"प्रिये ! कहीं तुम्हारे पैर में चोट तो नहीं लग गई"। उसने अपनी माँ से यह बात कही। माता ने कहा-"जा, तू अपनी इच्छापूर्वक जीवन व्यतीत कर, तेरा पति तेरा कुछ नहीं कर सकता ।” मंझली लड़की ने भी ऐसा ही किया। उसके पति ने लात खाकर पहले तो अपनी पत्नी को भला-बुरा कहा, लेकिन वह शीघ्र ही शांत हो गया। लड़की की माँ ने कहा कि बेटी! तुम भी आराम से रहोगी। अब तीसरी लड़की की बारी आई। उसके पति ने लात खाकर उसे पीटना शुरू कर दिया और कहा कि क्या तुम नीच कुल में पैदा हुई हो जो अपने पति पर प्रहार करती हो। यह कहकर पति को शांत किया गया कि अपने कुलधर्म के अनुसार ही लड़की ने ऐसा किया है, इसलिए इसमें बुरा मानने की बात नहीं । यह सुनकर लड़की की माता ने कहा कि तुम देवता के समान अपने पति की पूजा करना और उसका साथ कभी मत छोड़ना ।
(२) एक बार एक पर्वत और महामेघ में झगड़ा हो गया । मेघ ने पर्वत से कहा-“में तुझे केवल एक धार में बहा सकता हूँ।" . पर्वत-यदि तू मुझे तिलभर भी हिला दे तो मेरा नाम पर्वत नहीं।