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२५० प्राकृत साहित्य का इतिहास निर्माण हुआ । भरत की दिग्वजय और उनके राज्याभिषेक का यहाँ विस्तार से वर्णन है। उन्होंने आर्यवेदों की रचना की जिनमें तीर्थंकरों की स्तुति, यति-श्रावक धर्म और शांतिकर्म आदि का उपदेश था (सुलसा और याज्ञवल्क्य आदि द्वारा रचित वेदों को यहाँ अनार्य कहा है)। ब्राह्मणों (माहण) की उत्पत्ति बताई गई है।
ऋषभदेव की भांति महावीर के जन्म, विवाह, दीक्षा और उपसर्गों का तथा दीक्षा के पश्चात् महावीर के देश-देशान्तर में विहार का यहाँ ब्योरेवार विस्तृत वर्णन है', जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। महावीर के भ्रमणकाल में उनकी अनेक पार्थापत्यों से भेंट हुई । पार्थापत्य अष्टांगमहानिमित्त के पंडित होते थे। मुनिचन्द्र नामक पापित्य सारंभ और सापरिग्रह थे; वे किसी कुम्हार की दूकान पर रहा करते थे। नंदिषेण स्थविर पार्श्वनाथ के दूसरे अनुयायी थे। पार्श्वनाथ की शिष्याओं का उल्लेख भी यहाँ मिलता है। चित्रफलक दिखाकर अपनी आजीविका चलानेवाला मंखलिपुत्र गोशाल नालंदा में आकर महावीर से मिला। उसके बाद दोनों साथ-साथ विहार करने लगे। लाढ़ देश में स्थित वज्जभूमि और सुब्मभूमि में उन्होंने बहुत उपसर्ग सहे । वासुदेव-आयतन, बलदेव प्रतिमा, स्कंदप्रतिभा, मल्लि की प्रतिमा तथा ढोंढ सिवा आदि का उल्लेख यहाँ किया गया है । वैशाली से गंडक पार कर महावीर वाणियग्राम गये थे। ___ आगे चलकर वज्रस्वामी का वृत्तांत, दशपुर की उत्पत्ति, आर्यरक्षित, गोष्ठामहिल, जमालि, तिष्यगुप्त, आषाढ़ाचार्य, कौडिन्य, राशिक और बोटिक आदि के कथा-वृत्तांत का वर्णन है । वज्रस्वामी बाल्यावस्था में ही मुनिधर्म में दीक्षित हो गये थे। वे एक बड़े समर्थ और शक्तिशाली आचार्य थे। पाटलिपुत्र से उन्होंने उत्तरापथ में विहार किया और वहाँ दुर्भिक्ष होने के कारण वहाँ से पुरिम नगरी चले गये । आकाशगता विद्या
१. देखिये, जगदीशचन्द्र जैन, भारत के प्राचीन जैन तीर्थ ।