________________
२६२ प्राकृत साहित्य का इतिहास
और बन्दर ने उसके घोंसले के तिनके कर-कर के हवा में उड़ा दिये । फिर वह कहने लगा
नवि सि ममं मयहरिया, नवि सि ममं सोहिया व णिद्धावा | सुघरे ! अच्छसु विघरा जा वट्टसि लोगतत्तीसु॥
-तू न तो मेरी बड़ी है, न मुझे अच्छी लगती है और न मैं तुझसे स्नेह ही करता हूँ । हे सुघरे ! तू अब बिना घर के रह; दूसरों की तुझे बहुत चिन्ता है !
(२) किसी सीमाप्रान्त के ग्राम में कुछ आभीर लोग रहते थे। साधुओं के पास जाकर वे धर्म श्रवण किया करते थे। अपने उपदेश में साधुओं ने देवलोक का वर्णन किया। एक बार की बात है, इन्द्रमह के उत्सव पर वे लोग द्वारका गये। वहाँ उन्होंने लोगों को वस्त्र और सुगंधित पदार्थों आदि से सुसज्जित देखा। उन्होंने सोचा कि साधुओं के द्वारा वर्णित देवलोक यही है ; अब यहाँ से वापिस जाना ठीक नहीं। कुछ समय बाद साधुओं के पास जाकर उन्होंने निवेदन किया-महाराज ! जिस देवलोक का वर्णन आपने किया था उसका हमने साक्षात् दर्शन कर लिया है।
(३) मथुरा में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसकी रानी धारिणी बड़ी श्रद्धालु थी। मथुरा में भंडीरवन' की यात्रा : के लिए लोग जा रहे थे। राजा और रानी भी बड़ी सजधज के साथ यात्रा के लिए चले । इस समय किसी इभ्यपुत्र को यवनिका के बाहर निकला हुआ और महावर से रंगा यान में बैठी हुई रानी का सुन्दर पैर दिखाई दिया | उसने सोचा कि जब इसका पैर इतना सुंदर है तो फिर वह कितनी सुंदर होगी ! घर पहुँच कर उसने रानी का पता लगाया। इभ्यपुत्र उसके घर के पास एक दूकान लेकर रहने लगा। उसकी दासियाँ जब कुछ खरीदने आती तो वह उन्हें दुगुनी चीज़ देता, उनका आदर-सत्कार भी
१. वृन्दावन का प्रसिद्ध न्यगोध्र वृक्ष भंडीर कहा जाता था (महाभारत ११-५३-४)।