________________
टीका-साहित्य टीका-ग्रंथों में आवश्यक पर हरिभद्रसूरि और मलयगिरि की, उत्तराध्ययन पर शांतिचन्द्रसूरि और नेमिचन्द्रसूरि की तथा दशवकालिक सूत्र पर हरिभद्र की टीकायें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । आवश्यकटीका में से कुछ लौकिक लघु कथायें यहाँ दी जाती हैं
(१) कोई बन्दर किसी वृक्ष पर रहता था वर्षाकाल में ठंढी हवा से वह काँप रहा था। उसे कांपते देख सुंदर घोंसलेवाली एक चिड़िया ( बया) ने कहा
वानर ! पुरिसो सि तुमं निरत्थयं वहसि बाहुदंडाई।
जो पायवस्स सिहरे न करेसि कुडिं पडालिं वा ॥ -हे बन्दर ! तुम पुरुष होकर भी व्यर्थ ही अपनी भुजाओं को धारण करते हो तुम क्यों वृक्ष के ऊपर कोई कुटिया या चटाई आदि की टट्टी नहीं बना लेते ?
यह सुनकर बन्दर चुप रहा, लेकिन बया ने वही बात दो-तीन 'बार दुहराई। इस पर बन्दर को बड़ा गुस्सा आया और जहाँ वह बया रहती थी, उस वृक्ष पर चढ़ गया। बया वहाँ से उड़ गई
१. 'आवश्यक कथाएँ' नामक ग्रन्थ का पहला भाग एर्नेस्ट लॉयमान ने सन् १८९७ में लाइप्सिख से प्रकाशित कराया था। इसके बाद हरमन जैकोबी ने औसगेवैल्ते एर्सेलुंगन इन महाराष्ट्री-त्सुर आइनफ्युरुंग इन डास स्टूडिउम डेस प्राकृत प्रामाटिक टैक्स्ट वोएरतरबुख (महाराष्ट्री से चुनी हुई कहानियाँ-प्राकृत के अध्ययन में प्रवेश कराने के लिए) सन् १८८६ में प्रकाशित कराया। इसमें जैन आगमों की उत्तरकालीन कथाओं का समावेश है। जैनागमों और टीकाओं से त्रुनी हुई कथाओं के लिए देखिए जगदीशचन्द्र जैन, दो हजार बरस पुरानी कहानियाँ।