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दिगंबरों की आगम मान्यता ૨૭૨ दिगम्बर सम्प्रदाय में श्वेताम्बर परम्परा द्वारा स्वीकृत ४५ आगमों को मान्य नहीं किया गया। दिगम्बरों के मतानुसार आगम-साहित्य विच्छिन्न हो गया है । लेकिन दिगम्बर ग्रन्थों में प्राचीन आगमों का नामोल्लेख मिलता है। जैसे श्वेताम्बरीय नन्दिसूत्र में आगमों की गणना में १२ उपांगों का उल्लेख नहीं है वैसे ही दिगम्बर परम्परा में भी उपांगों को आगमों में नहीं गिना गया है। श्वेताम्बरों की भाति दिगम्बरों के द्वादशांग आगम की रचना भी गणधरों द्वारा अर्धमागधी में की गई है। दोनों ही सम्प्रदाय बारहवें अंग दृष्टिवाद के पाँच भेद स्वीकार करते हैं जिनमें १४ पूर्वो का अन्तर्भाव होता है। श्वेताम्बरों का आगमसाहित्य अर्धमागधी में लिखा गया है, जब कि दिगम्बरों के प्राचीन साहित्य की भाषा शौरसेनी मानी जाती है। आगमों की संख्या का विभाजन और उनके ह्रास आदि के संबंध में श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मान्यता पहले दी जा चुकी है। दिगम्बर मान्यता यहाँ दी जाती है।
दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार आगमों के दो भेद हैंअंगबाह्य और अंगप्रविष्ट | अंगबाह्य के चौदह भेद हैं-सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, • दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पाकल्प, महाकल्प, पुंडरीक, महापुंडरीक और निषिद्धिका (णिसिहिय)।' अंगप्रविष्ट के बारह भेद हैं-आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्या
१. षखंडागम, भाग १, पृष्ठ- ९६ ; तथा देखिये पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि (१.२०); अकलंक, राजवार्तिक (१.२०); नेमिचन्द्र, गोम्मटसार, जीवकांड (पृष्ठ १३४ आदि)। इस विभाग में श्वेताम्बर सम्प्रदाय द्वारा मान्य दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्प, व्यवहार और निसीह जैसे प्राचीन सूत्रों का समावेश हो जाता है। सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना और प्रतिक्रमण का अन्तर्भाव आवश्यक में होता है।