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ओघनियुक्तिभाष्य
२३३ कुत्ता किया है)। शुभ और अशुभ तिथि, करण और नक्षत्र पर विचार करते हुए चक्रधर, पांडुरंग, तञ्चन्निय (बौद्ध) और बोटिक साधुओं का दर्शन अशुभ बताया है। कालधर्म को प्राप्त साधु के परिष्ठापन की विधि का प्रतिपादन करते हुए उनके शव को स्थंडिल (प्रासुक जीव-जन्तुरहित भूमि ), देवकुल अथवा शून्यगृह आदि स्थानों में रखने का विधान है। नदी में यदि घुटनों तक (जंघार्ध) जल हो तो एक पैर जल में और दूसरा पैर ऊपर उठाकर नदी पार करे। यहाँ संघट्ट (जहाँ जंघार्ध-प्रमाण जल हो), लेप (नासिप्रमाण जल) और लेपोपरि (जहाँ नाभि के ऊपर तक जल हो) शब्दों की परिभाषा दी है । आठ वर्ष के बालक, नौकर-चाकर, वृद्ध, नपुंसक, सुरापान से मत्त और लूले-लंगड़े पुरुष से, तथा कूटती, पीसती, कातती और रुई पीजती हुई तथा गर्भवती स्त्री से भिक्षा स्वीकार करने का निषेध है। प्रकाश रहते हुए साधु को भोजन कर लेना चाहिये, अंधेरे में भोजन करने की मनाई है। मालवा के चोर लोगों का अपहरण करके ले जाते थे। साधुओं को उनसे सतर्क रहने के लिये कहा है। कलिंग देश के कांचनपुर नगर में भयङ्कर बाढ़ आने का उल्लेख यहाँ मिलता है।
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