________________
नायाधम्मकहाओ कौन मरे और कौन बाद में ? अतएव आपकी अनुमतिपूर्वक में प्रव्रज्या स्वीकार करना चाहता हूँ । आपलोग अनुमति दें।
निग्रंथप्रवचन की दुर्धर्षता बताते हुए कहा है
अहीव एगंतदिट्ठीए, खुरो इव एगंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुछो इव भुयाहिं दुत्तरे, तिक्खं चंकमियव्वं, गरुअं लंबेयव्वं, असिधाराव्वयं चरियव्वं ।
-इस प्रवचन में सर्प के समान एकांतदृष्टि और छरे के समान एकांत धार रखनी होती है, लोहे के जौ के समान इसे चबाना पड़ता है। बालू के ग्रास के समान यह नीरस है, महानदी गंगा के प्रवाह के विरुद्ध तैरने तथा महासमुद्र को भुजाओं द्वारा पार करने की भाँति दुस्तर है, असिधाराव्रत के समान इसका आचरण दुष्कर है । (कायर, कापुरुष और क्लीबों का इसमें काम नहीं है)।
दूसरे अध्ययन का नाम संघाट है। राजगृह नगर में धन्य नामका एक सार्थवाह रहता था | भद्रा उसकी भार्या थी । देवदत्त उनका एक बालक था जिसे पंथक नामक दासचेट खिलाने के लिये बाहर ले जाया करता था। एक बार पंथक राजमार्ग पर देवदत्त को खिला रहा था कि इतने में विजय चोर बालक को उठा ले गया | बहुत ढूढ़ने पर भी जब बालक का पता न लगा तो नगर-रक्षकों को साथ ले धन्य ने नगर के पास के जीर्ण उद्यान में प्रवेश किया। वहाँ पर बालक का शव एक कुँए में पड़ा मिला | नगर-रक्षकों ने चोर का पीछा किया और उसे पकड़ कर जेल में डाल दिया । संयोगवश किसी अपराध के कारण धन्य को भी जेल हो गई और धन्य को भी उसी जेल में रक्खा गया । धन्य की स्त्री भद्रा अपने पति के वास्ते जेल में रोज खाने का डिब्बा (भोयणपिडग) भेजती, उसमें से विजय चोर और धन्य दोनों भोजन करते । कुछ समय बाद धन्य रिश्वत आदि देकर जेल से छूट गया और विजय चोर वहीं मर गया ।