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२२२ प्राकृत साहित्य का इतिहास का विवेचन है | उत्तानमल्लकाकार, अवाङ्मुखमल्लकाकार, सम्पुटमल्लकाकार, उत्तानखंडमल्लक, अवाङ्मुखखंडमल्लक, संपुटखंडमल्लक, भित्ति, पडालिका, वलभी, अक्षपाट, रुचक और काश्यप नामक ग्रामों की व्याख्या की गई है। पाषाण, ईंट, मिट्टी, काष्ठ (खोड), बाँस और काँटों के बने हुए प्राकारों का उल्लेख है। साधु को विभिन्न देशों की भाषाओं का ज्ञाता होना चाहिये। जनपद की परीक्षा करते हुए साधु को इस बात का ज्ञान होता है कि किस देश में किस प्रकार से धान्य पैदा होता है। उदाहरण के लिये, लाट देश में वर्षा से, सिन्ध में नदी के जल से, द्रविड में तालाब के जल से, उत्तरापथ में कुँए के जल से तथा बन्नासा और डिंभरेलक में नदी के पूर से धान्य की पैदावार होती है, काननद्वीप में नाव के द्वारा धान रोपा जाता है । कहीं सुभाषित भी दिखाई दे जाते हैं
कत्थ व न जलइ अग्गी, कत्थ व चंदो न पायडो होइ । कत्थ वरलक्खणधरा, न पायडा होति सप्पुरिसा ।। उदए न जलइ अग्गी, अब्भच्छिन्नो न दीसइ चंदो। मुक्खेसु महाभागा, विजापुरिसो न मायति ।।
-अग्नि कहाँ प्रकाशमान नहीं होती ? चन्द्रमा कहाँ प्रकाश . 'नहीं करता ? शुभ लक्षण के धारक सत्पुरुष कहाँ प्रकट नहीं होते ? अग्नि जल में बुझ जाती है, चन्द्रमा मेघाच्छादित आकाश में दिखाई नहीं देता और विद्यासंपन्न पुरुष मूखों की सभा में शोभा को प्राप्त नहीं होते।
साधुओं को कब विहार करना चाहियेउच्छू बोलिंति वई, तुंबीओ जायपुत्तभंडाओ । वसहा जायत्थामा, गामा पव्वायचिक्खल्ला ॥ अप्पोदगा या मग्गा, वसुहा वि य पक्कमट्टिया जाया । अन्नोकंता पंथा, विहरणकालो सुविहियाणं ॥
-जब ईख बाड़ों के बाहर निकलने लगें, तुंबियों में छोटेछोटे तुंबक लग जायें, बैल ताकतवर दिखाई देने लगें, गाँवों की