________________
२२८ प्राकृत साहित्य का इतिहास विवाद उपस्थित हो जाये तो किस प्रकार विवाद को शान्त करे
अज्जो! तुम चेव करेहि भागे, ततो णु घेच्छामो जहक्कमेणं। गिण्हाहि वा जं तुह एत्थ इ8, विणासधम्मीसु हि किं ममत्तं ॥
-हे आर्य ! लो, तुम ही इसका विभाग करो। इसके बाद हम लोग यथाक्रम से ग्रहण करेंगे। जो तुम्हें अच्छा लगे वह तुम ले लो। वस्त्र आदि वस्तुएँ विनाशशील हैं, इसलिए उनमें ममत्व करना उचित नहीं। आचार्य के अभ्युत्थानसंबंधी प्रायश्चित का वर्णन
भग्गऽम्ह कडी अब्भुट्ठणेण देइ य अणुट्ठणे सोही ।
अनिरोहसुहो वासो, होहिइ णे इत्थ अच्छामो॥ --पहले गच्छ में आचार्य के लिए बार-बार उठने-बैठने से हमारी कमर टूट गई है। वहाँ यदि हम नहीं उठते थे तो प्रायश्चित्त का भागी होना पड़ता था और कठोर वचन सहन करने पड़ते थे लेकिन इस गच्छ में प्रवेश करने के बाद बड़ा सुखकर जीवन हो गया है। इसलिए अब यहीं रहेंगे, लौटकर अपने गच्छ में नहीं जायेंगे। जिनशासन का सार क्या है
जं इच्छसि अप्पणतो, जं च ण इच्छसि अप्पणतो। तं इच्छ परस्स वि या, एत्तियगं जिणसासणयं ॥ -जिस बात की अपने लिए इच्छा करते हो, उसकी दूसरे के लिए भी इच्छा करो, और जो बात अपने लिए नहीं चाहते हो उसे दूसरे के लिए भी न चाहो-यही जिनशासन है। ____ मृत्यु का भय सामने है, इसलिये जो करना है आज ही कर लो
जंकल्ले कायव्वं, णरेण अज्जे व तं वरं काउं| मञ्च अकलुणहिअओ, न हु दीसइ आवयंतो वि ।। तूरह धम्मं काउं, मा हु पमायं खणंपि कुव्वित्था । बहुविग्धो हु मुहुत्तो, मा अवरण्हं पडिच्छाहि ॥