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व्यवहारभाज्य
सिके प्रचलित थे। तोसली में तालोदक (तालाब) और राजगृह में तापोदक कुंड प्रसिद्ध थे। तोसली की व्याघरणशाला (एक प्रकार का स्वयंवर-मंडप) में हमेशा एक अग्निकुंड प्रज्वलित रहता था जहाँ बहुत से चेटक और एक चेटकी स्वयंवर के लिये प्रविष्ट होते थे। यहाँ कप्प (बृहत्कल्प ), नन्दिसूत्र तथा सिद्धसेन और गोविन्दवाचक का उल्लेख है। गोविंदवाचक १८ बार बाद में हार गये, बाद में एकेन्द्रिय जीव की सिद्धि के लिये उन्होंने गोविन्दनियुक्ति की रचना की | आचारांग आदि को ज्ञान और गोविंदनियुक्ति को दर्शन के उदाहरण रूप में उपस्थित किया गया है।
व्यवहारभाष्य निशीथ और बृहत्कल्पभाष्य की भाँति व्यवहारभाष्य भी परिमाण में काफी बड़ा है । मलयगिरि ने इस पर विवरण लिखा है । व्यवहारनियुक्ति और व्यवहारभाष्य की गाथायें परस्पर मिश्रित हो गई हैं। इस भाष्य में साधु-साध्वियों के आचारविचार, तप, प्रायश्चित्त, और प्रसंगवश देश-देश के रीतिरिवाज
आदि का वर्णन है। ___ शुद्ध भाव से आलोचना करना साधु के लिये मुख्य बताया है
जह बालो जपेंतो कजमकजं च उज्जयं भणइ । तं तह आलोइज्जा मायामयविप्पमुक्को उ ।
-जैसे कोई बालक अच्छे या बुरे कार्य को सरल भाव से प्रकट कर देता है, उसी प्रकार माया और मद से रहित कार्यअकार्य की आलोचना आचार्य के समक्ष कर देनी चाहिये।
१. इसिताल नाम के तालाब का भी यहाँ उल्लेख है (बृहत्कल्पभाष्य ३, ४२२३)। खारवेल के हाथीगुंफा शिलालेख में इसका नाम आता है।