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नायाधम्मकहाओ
८३ राजा श्रेणिक के एक घोड़े के पाँव के नीचे आकर कुचला गया | मर कर वह स्वर्ग में गया।
चौदहवें अध्ययन का नाम तेयली है। तेयलिपुर में तेयलिपुत्र नामका एक मंत्री रहता था | उसी नगर में मूषिकारदारक नाम का एक सुनार था। पोट्टिला नामकी उसकी एक सुन्दर कन्या थी। तेयलिपुत्र और पोट्टिला का विवाह हो गया। कुछ समय बाद तेयलिपुत्र को अपनी पत्नी प्रिय न रही और वह उसके नाम से भी दूर भागने लगा। एक बार तेयलिपुर में सुब्रता नामकी एक आर्या का आगमन हुआ | पोट्टिला ने उससे किसी वशीकरण मंत्र अथवा चूर्ण आदि की याचना की, लेकिन आर्या ने अपने दोनों कानों को अपनी उँगलियों से बन्द करते हुए पोट्टिला को इस तरह की बात भी ज़बान पर न लाने का आदेश दिया। पोट्टिला ने श्रमणधर्म में प्रव्रज्या ग्रहण कर देवगति प्राप्त की।
पन्द्रहवें अध्ययन का नाम नंदीफल है । अहिच्छत्रा नगरी (आधुनिक रामनगर, बरेली जिला) में कनककेतु नाम का राजा राज्य करता था। एक बार वह विविध प्रकार का मालअसबाब अपनी गाड़ियों में भर कर अपने सार्थ के साथ बनिजव्यापार के लिये रवाना हुआ । मार्ग में उसने नंदीफल वृक्ष देखे । कनककेतु ने सार्थ के लोगों को उन वृक्षों से दूर ही रहने का आदेश दिया । फिर भी कुछ लोग इसकी परवा न कर उन वृक्षों के पास गये और उन्हें अपने जीवन से वंचित होना पड़ा।
सोलहवें अध्ययन का नाम अवरकंका है। चंपा नगरी में तीन ब्राह्मण रहते थे । उनकी स्त्रियों के नाम थे क्रमशः नागसिरी, भूयसिरी और जक्खसिरी। एक बार नागसिरी ने धर्मघोष नाम के स्थविर को कडुवी लौकी का साग बना कर उनके भिक्षापात्र में डाल दिया जिसे भक्षण कर उनका प्राणान्त हो गया । जब उसके घर के लोगों को यह ज्ञात हुआ तो नागसिरी पर बहुत डाटफटकार पड़ी और उसे घर से निकाल दिया गया | मर कर वह