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छेदसूत्र छेदसूत्र जैन आगमों का प्राचीनतम भाग होने से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इन सूत्रों में निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों के प्रायश्चित्त की विधि का प्रतिपादन है। ये सूत्र चारित्र की शुद्धता स्थिर रखने में कारण हैं, इसलिये इन्हें उत्तमश्रुत कहा है (जम्हा एत्थ सपायच्छित्तो विधी भण्णति, जम्हा य तेण चरणविसुद्धी करेति, तम्हा तं उत्तमसुतं-निशीथ, १६ उद्देशक, ६१८४ भाष्यगाथा की चूर्णी, (पृ० २५३ )। छेदसूत्रों में जैन भिक्षुओं के आचार-विचारसंबंधी नियमों का विवेचन है जिसे भगवान महावीर और उनके शिष्यों ने देश-काल की परिस्थितियों के अनुसार श्रमण सम्प्रदाय के लिये निर्धारित किया था । बौद्धों के विनयपिटक से इनकी तुलना की जा सकती है। छेदसूत्रों के गंभीर अध्ययन के बिना कोई आचार्य अपने संघाड़े (भिक्षु सम्प्रदाय) को लेकर ग्रामानुग्राम विहार नहीं कर सकता, गीतार्थ नहीं बन सकता तथा आचार्य और उपाध्याय जैसे उत्तरदायी पदों का अधिकारी नहीं हो सकता। निशीथ के भाष्यकर्ता ने छेदसूत्रों को प्रवचन का रहस्य प्रतिपादित कर गुह्य बताया है।' जैसे कच्चे घड़े में रक्खा हुआ जल घड़े को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार इन सूत्रों में प्रतिपादित सिद्धान्तों का रहस्य अल्प सामर्थ्यवाले व्यक्ति के नाश का कारण होता है। छेदसूत्र संक्षिप्त शैली में लिखे गये हैं। इनकी संख्या छह है-निसीह (निशीथ), महानिसीह (महानिशीथ),
१. बौद्धों के विनयपिटक को भी छिपाकर रखने का आदेश है जिससे अपयश न हो । देखिये मिलिन्दपण्ह (हिन्दी अनुवाद, पृ. २३२)।