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भाष्य-साहित्य
निशीथभाष्य निशीथ, कल्प और व्यवहारभाष्य के प्रणेता हरिभद्रसूरि के समकालीन संघदासगणि माने जाते हैं जो वसुदेवहिण्डी के रचयिता संघदासगणिवाचक से भिन्न हैं । निशीथभाष्य की अनेक गाथायें बृहत्कल्पभाष्य और व्यवहारभाष्य से मिलती हैं जो स्वाभाविक ही है। पीठिका में सस, एलासाढ़, मूलदेव
और खंडा नाम के चार धूतों की मनोरंजक कथा दी गई है जिसे हरिभद्रसूरि ने अपने कथा-साहित्य में स्थान देकर धूर्ताख्यान जैसे सरस ग्रंथ की रचना की | भाष्य में यह कथा अत्यंत संक्षेप में है
सस-एलासाढ़-मूलदेव-खंडा य जुण्णउज्जाणे । सामत्थणे को भत्तं, अक्खातं जे ण सद्दहति ।। चोरभया गावीओ, पोट्टलए बंधिऊण आणेमि | तिलअइरूढ़कुहाड़े, वणगय मलणा य तेल्लोदा ॥ वणगयपाटणकुंडिय, छम्मासा हथिलग्गणं पुच्छे ।
रायरयग मो वादे, जहिं पेच्छइ ते इमे वत्था । सस, एलासाढ़, मूलदेव और खंडा एक जीणे उद्यान में ठहरे हुए थे। प्रश्न उठा कि कौन सब को भोजन खिलाये ? तय पाया कि सब अपने-अपने अनुभव सुनायें, और जो इन अनुभवों पर विश्वास न करे वही भोजन का प्रबन्ध करे। सबसे पहले एलासाढ़ की बारी आई। एलासाढ़ ने कहा--"एक बार मैं अपनी गाय लेकर किसी जंगल में गया। इतने में वहाँ चोरों का आक्रमण हो गया। गायों को एक कंबल में छिपा अपनी पोटली बाँधकर मैं गाँव को लौट आया। थोड़ी देर में चोर गाँव में आ घुसे | यह देखकर गाँव के लोग एक फूट (वालुंक ) में घुस गये | इस फूट को एक बकरी खा गई ।