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प्राकृत साहित्य का इतिहास खिलाता। एक बार मत्स्य का भक्षण करते हुए सोरियदत्त के गले में मछली का कांटा अटक गया और वह मर गया ।
नौवें अध्ययन में देवदत्ता की कथा है। देवदत्ता दत्त नाम के एक गृहपति की कन्या थी। वेसमणदत्त राजा के पुत्र पूसनन्दि के साथ उसका विवाह हो गया। पूसनन्दि बड़ा मातृभक्त था । वह तेल की मालिश आदि द्वारा अपनी माता की सेवा-शुश्रूषा में सदा तत्पर रहता था । देवदत्ता को यह बात पसन्द न थी । एक दिन रात्रि के समय उसने अपनी सोती हुई सास की हत्या कर दी । राजा ने देवदत्ता के वध कीआज्ञा दी। ___ दसवें अध्ययन में अंजू की कथा है। अंजू धनदेव सार्थवाह की कन्या थी। विजय नाम के राजा से उसका विवाह हुआ | एक बार वह किसी व्याधि से पीड़ित हुई और जब कोई वैद्य उसे अच्छा न कर सका तो वह मर गई ।
दूसरे श्रुतस्कंध में सुखविपाक की कथायें हैं जो लगभग एक ही शैली में लिखी गई हैं।
दिठिवाय ( दृष्टिवाद) दृष्टिवाद द्वादशांग का अन्तिम बारहवाँ अंग है जो आजकल व्युच्छिन्न है।' विभिन्न दृष्टियों (मत-मतांतरों) का प्ररूपण
१. दिगम्बर आम्नाय के अनुसार दृष्टिवाद के कुछ अंशों का उद्धार षट्खंडागम और कषायप्राभृत में उपलब्ध है । अग्रायणी नामक द्वितीय पूर्व के १४ अधिकार ( वस्तु ) बताये गये हैं जिनमें पाँचवें अधिकार का नाम चयनलब्धि है। इस अधिकार का चौथा पाहुड़ कम्मपयडी या महाकम्मपयडी कहा जाता है। इसी का उद्धार पुष्पदंत और भूतबलि ने सूत्ररूप से षटखंडागम में किया है। इसी तरह ज्ञानप्रवाद नाम के पाँचवें पूर्व का उद्धार गुणधर आचार्य ने किया है। ज्ञानप्रवाद के १२ अधिकारों में १०वें अधिकार के तीसरे पाहुड का नाम 'पेज', 'पेज दोस' या 'कसायपाहुड' है। इसका गुणधर आचार्य ने १८० गाथाओं में विवरण किया है। देखिये डॉक्टर हीरालाल जैन, षट्खंडागम की प्रस्तावना २, पृष्ठ ४१-६८ ।