________________
उवासगदसाओ
८५ था । भूख-प्यास के कारण जब वह अत्यंत व्याकुल होने लगा
और चलने तक में असमर्थ हो गया तो अपनी मृत पुत्री के . मांस का भक्षण कर उसने अपनी क्षुधा शान्त की। ____ उन्नीसवें अध्ययन में पुंडरीक राजा की कथा है। पुंडरीक के छोटे भाई का नाम कंडरीक था। कंडरीक ने स्थविरों से धर्मोपदेश सुना और प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। लेकिन कंडरीक रूखा-सूखा भोजन करने और कठोर व्रत पालने के कारण अनगारधर्म में न टिक सका, और उसने पुनः गृहस्थाश्रम स्वीकार कर लिया।
उवासगदसाओ ( उपासकदशा) उपासकदशा के दस अध्ययनों में महावीर के दस उपासकों के आचार का वर्णन है, इसलिये इसे उवासगदसाओ भी कहा जाता है ।२ वर्णन में विविधता कम है। धर्म में उपासकों की श्रद्धा-भक्ति रखने के लिये इस अंग की रचना की गई है। अभयदेव ने इस पर टीका लिखी है।
पहले अध्ययन में वाणियगाम के धनकुबेर आनंद उपासक की कथा है। वाणियगाम के उत्तरपश्चिम में कोल्लाक संनिवेश (आधुनिक कोल्हुआ) था जहाँ आनन्द के अनेक सगे-संबंधी रहा करते थे। एक बार वाणियगाम में महावीर का आगमन हुआ | आनन्द ने उनकी वंदना कर बारह व्रत स्वीकार किये। उसने धन, धान्य, हिरण्य, सुवर्ण, खाद्य, गंध, वस्त्र आदि
१. संयुत्तनिकाय ( २, पृ० ९७ ) में भी मृत कन्या के मांस को भक्षण करके जीवित रहने का उल्लेख है।।
२. आगमोदयसमिति बंबई द्वारा १९२० में प्रकाशित । होएनल ने इसे बिब्लोथिका इंडिका, कलकत्ता से १८८५-८८ में अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रकाशित किया है।
३. इसकी पहचान मुजफ्फरपुर जिले में बसाढ़ (वैशाली) के पास के बनिया नामक गाँव से की जाती है।