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अक्खायति
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स० [आख्यानपञ्चम], चार वेदों के साथ अतिरिक्त पांचवे के रूप में प्राचीन महाकाव्य या इतिहास मं नपुं. प्र. वि. ए. व. वेदमक्खानपञ्चमन्ति इतिहासपञ्चमं वेदचतुक्कं जा. अड. 5.449.
अक्खायति आ + √ख्या का कर्म वा वर्त. प्र. पु. ए. व. [आख्यायति], उद्घोषित किया जाता है, कहा जाता है - एवमक्खायति एवमनुसूयति, जा. अड. 5.411 सो नेस अग्गमक्खायति दी. नि. 3.61. अक्खायिक त्रि. [आख्यापक].
कथक, कहने
वाला, वर्णन करने वाला का स्त्री. प्र. वि., ए. व. पियक्खानं अक्खायिका मय्हं तुट्टिदानं देहि, जा. अ
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3.471.
अक्खायिका स्त्री. [आख्यायिका] सुसंगत कहानी, कथा, केवल समास के स. उ. प. में ही प्राप्त, लोक, समुद्द, के
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अन्त. द्रष्ट.. अक्खायित त्रि., खायित का निषे . [ अखादित], नहीं खाया गया, अभक्षित (भोजन आदि) - सिवथिकं गन्त्वा अक्खायितं सरीरं परिसत्वा, पारा 42; परि. 56. अक्खायी त्रि., [आख्यायिन् आख्या + णिनि ], कहने वाला सूचना देने वालायिनो पु. प्र. वि. ब. व. पुब्बमेव राजकुलं गन्त्वा अक्खायन्तस्स पुब्बमक्खायिनो
जा. अट्ठ. 3.91.
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अक्खिम्हा क्खीनि
अक्खाहत त्रि धुरे पर दृढ़रूप से रखा हुआ चक अक्खाहतं म अट्ठासीति, अ. नि. 1 ( 1 ) . 135; अक्खे पवेसेत्या ठपितमिव अ. नि. अड. 1.82. अक्खि नपुं., [अक्षि ], आंख, नेत्र नयनं त्ववि नेत्तं च लोचनं चाच्छि चक्षु च अभि. प. 149 सूकेनक्खीव घट्टित जा. अड. 7.188 म्हा पू. वि. ए. व. अक्खिगूथको कम्णम्हा कण्णगूथको सु. नि. 199 प्र. / द्वि. वि. ब. व. अक्खीनि वाता विज्झन्ति ध. प. अट्ठ. 1.6; अक्खीनि उम्मीलेत्वा, ध. प. अट्ठ. 2.113; क्खीहि प. वि. व. व. अक्खीहि अस्सूनि पग्घरन्ते, ध प. अ. 1.6; अक्खीहि अस्सुना पग्घरन्तेन, जा० अ० 1.219: क्खीनं प. वि. व. द. अक्खीनं अनिमिसताय, जा. अ. 6.163: सुल. अक्ख, अच्छि अक्खिक अञ्जन नपुं० तत्पु० स०, आँखा का अञ्जन पण्डुकासावपारूपनअक्खिअञ्जनसीसमक्खनादीहि अत्तभावं
मण्डेत्वा ध. प. अट्ठ. 2.205; आवाटक पु०, तत्पु० स० [अक्षि आवर्तक], आंख की गर्तिका, आंख का कोटर,
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अक्खिगण्ड
अक्षिकूप का प्र. वि. व. व. अविखआवाटका मत्थल आहच्च अहंसु, म. नि. अट्ठ (मू०प.) 1 ( 1 ).362. अक्खिक' त्रि., [अक्षिक ], आंखवाला, केवल स. उ. प. के रूप में ही प्रयुक्त अन, अञ्जन, अण्ड, तम्ब, मणि, मण्डल के अन्त. द्रष्ट..
अविखक' पु. / नपुं., [अक्षिक]. स. पू. प. के रूप में प्रयुक्त, जाल का छिद्र, जाल में आंख की आकृति का छिद्र हारक त्रि, जाल को ले जानेवाला पुरिसो अक्खिकहारको गन्त्वा उभतेहि अक्खीहि आगच्छेय्य, म. नि. 2.52, द्रष्ट. जालक्खिक के अन्त..
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अक्खिक' [आक्षिक] जुए से जीता हुआ, जुआड़ी, द्यूतकार, पासों से जुआ खेलने वाला अक्खन दिखती ति अक्खिको क. व्या. 353 मो. व्या. 4.29. अक्खिकूट नपुं., [अक्षिकूट], आंख का कोर या कोना टानि प्र. वि. ब. व. उभयतो च अक्खिकुटानि भगवतो लोहितकानि होन्ति महानि 261: अक्खिकुटादीनि लुञ्चित्वा म. नि. अड. (मू.प.) 1 (1). 283 टेहि तृ. वि., व.व. सेतेहि अक्खिकुटेहि समन्नागता.... जा. अट्ट 7.309 अक्खिकूप पु०, [अक्षिकूप], आंख का कोटर या अक्षि- विवर तो प. वि. ए. व. अक्खि अक्खिकूपतो मुनि जा. अड. 4.365: अक्खि ओसधबलेन परिब्भमित्वा अक्खिकूपतो निक्खमित्वा न्हारुसुत्तकेन ओलम्बमानं अट्ठासि, जा. अट्ठ 4.365; पेसु सप्त वि. ब. व. - अक्षिकूपेसु अक्खितारका, म. नि. 1.115; तुल, अक्खि आवाटक - पट्ठि नपुं, तत्पु॰ स॰ [अक्षिकूपस्थि], आंख के भीतर की हड्डियों में से एक ना तृ. वि. ए. व. अक्षिकूपद्विना हेडा, अभि. अब 641 क पु. तत्पु. स. [अक्षिकूपक]. आंख का कोटर, आंख का विवर या कोटरिका - केसु सप्त. वि. ब. व. ओकासतो अक्खिकूपकेसु वितन्ति, खु पा. अड. 49: - कट्टिक नपुं, आंख के गड्ढे की हड्डी - तत्थ यो अक्खिपके पतिद्वितो हेवा अक्षिकूपकहिकेन, ध. स. अट्ठ. 341.
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अक्खिकोटि स्त्री०, तत्पु० स० [अक्षिकोटि ], आंख का कोना, आंख का किनारा या तु. वि. ए. व. अक्खिकोटिया ओलोकेत्वा जा. अनु. 3.363 तो प. वि. ए. व. - अक्खिकोटितो अञ्जनसलाकाय नीहारित्वा जा. अड. 3371:टिं द्वि. वि. ए. व. अक्खिकोटिं पहरि, ध. प. अट्ठ. 1.380. अक्खिगण्ड पु. कर्म. स. [ अक्षिगण्ड], बरौनियों तथा पलकों के साथ दिखने वाला आंख का गोलक, अक्षिगोलक ण्डा
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