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अक्खमन
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अक्खर
अक्खमन नपुं., खमन का निषे. [अक्षमन], सहनशक्ति अथवा क्षान्ति का अभाव, असहिष्णुता, दूसरों की सम्पत्ति को देखकर ईर्ष्या करना - परसम्पत्तिखीयनलक्खणा इस्सा, तस्सा अक्खमनलक्खणा वा. म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1(1).114. अक्खम्भिय त्रि., [अक्षोभ्य], खम्भिय का निषे०, अकम्प्य, अविक्षुब्ध, अचल - अक्खम्भियो होति अगारमावसं.दी. नि. 3.109; अक्खम्भियोति अविक्खम्भनीयो, न नं कोचि ठानतो चाले सक्कोति, दी. नि. अट्ठ. 3.94. अक्खय त्रि., खय का निषे. [अक्षय]. क्षय का अभाव, लगातारपन; - पटिमान त्रि., प्रश्नों के उत्तर देने की कभी क्षीण न होने वाली क्षमता - एत्थन्तरे ... अयं गङ्गाऊमिवेगो विय अक्खयपटिभानो..., मि. प. 3; - विचित्रपटिमान त्रि०, प्रश्नों के उत्तर देने की कभी समाप्त न होने वाली अद्भुत क्षमता - आयस्मा नागसेनो ... अक्खयविचित्रपटिभानो मि. प. 18. अक्खयित त्रि., द्रष्ट. अक्खायित. अक्खयुद्ध नपुं.. तत्पु. स., पासा का खेल - ... एते राजानो
असठेन अक्खयुद्धं पस्सन्तु, जा. अट्ठ. 7.173. अक्खर पु., नपुं.. [अक्षर], 1.क, ध्वनि, वर्ण, वर्णमाला में आया हुआ अक्षर, अभिलेख, लिपि - वण्णो त अक्खरोप्यथ, अभि. प. 348; एकेकमेव अक्खरं वत्वा, जा. अट्ठ. 3.403; लिपिया... इमस्स अक्खरस्स अनन्तरं इमं अक्खरं मि. प. 87; अपरिमाणा पदा, अपरिमाणा अक्खरा .... नेत्ति. 10; अक्खरानि दिस्वा निटुं गच्छेय्याथाति वेदेय्याथ, जा. अट्ठ. 6.235; - टि. क. व्या. के अनुसार 8 स्वर-ध्वनियों और 33 व्यञ्जन-ध्वनियों अर्थात् कुल 41 तरह की अर्थ-ज्ञान में सहायक वर्णो को ही अक्खर कहते हैं- अत्थो अक्खरसातो. अक्खरापादयो एकचत्तालीसं.क. व्या. 1-2; परन्तु मोग्गल्लान के अनुसार 43 वर्ण हैं जिसमें ए (हस्व) और ओ (ह्रस्व) ये दो वर्ण अधिक हैं; 1.ख. पद अथवा शब्द किसी एक शब्द के विप के रूप में - अपि च अञमओहि ... अक्खरेहि अञमजेहि ... वुत्ता भगवता, नेत्ति. 33; 1.ग. गाथा के एक पाद अथवा एक चौथाई भाग के विप. के रूप मेंभगवन्तं गाथाय अज्झभासीति भगवन्त अक्खरपदनियमितगन्थितेन वचनेन अभासीति अत्थो, खु. पा. अट्ठ. 94; 2. नपुं. लोक कहावत, अक्षर की लकीरमात्र, आशय को ध्यान में न रखकर केवल अक्षरमात्र - तदेव पोराणं अग्गज अक्खरं अनुसरन्ति, न त्वेवस्स अत्थं आजानन्ति, दी. नि. 3.64; अग्गझं अक्खरन्ति
लोकुप्पत्तिवंसकथं दी. नि. अट्ठ. 3.47; 3. कभी नष्ट न होने वाला निर्वाण का पद - अपलोकितं निपुणमनन्तमक्खरं अभि. प. 7; अक्खरं लिपि मोक्खेसु, अभि. प. 1063; - रत्थ पु., तत्पु. स. [अक्षरार्थ], शब्दों का शाब्दिक अर्थ - .... चतूहि मट्ठस्स सुद्धस्साति अक्खरत्थो, जा. अट्ठ. 2.88; विप. अधिप्पाय; - कोस पु., व्याकरण से सम्बद्ध एक रचना का शीर्षक, सद्धर्मकीर्ति-रचित 'एकक्खरकोस' - एकक्खरकोसं नाम सद्दप्पकरणं, एकक्ख. 184; - कोसल्ल नपुं.. तत्पु. स. [अक्षरकौशल्य], अक्षरों या वर्गों के प्रयोग में प्रवीणता, अक्षरचातुर्य, लिपियों के ज्ञान में कुशलता - तस्मा अक्खरकोसल्लं बहूपकारं सुत्तन्तेसु, क. व्या. 1; - चिन्तक पु.. तत्पु. स., अक्षरों पर चिंतन करने वाला, व्याकरण का ज्ञाता - ... अक्खरचिन्तका इच्छन्ति, खु. पा. अट्ठ. 9; अतीतकालिकानम्पि हि छन्दसि वत्तमानवचनं अक्खरचिन्तका इच्छन्ति, सु. नि. अट्ठ. 1.15; यं छन्दोनमत्तेन अक्खरचिन्तका सोत्तियं वण्णयन्ति, सु. नि. अट्ठ. 2.141; - जाननकीळा स्त्री., कर्म. स. [अक्षरजाननक्रीड़ा], अक्षरों या वर्णों को जानने की क्रीड़ा, आकाश में लिखित या किसी की पीठ पर लिखित अक्षरों को जानने की क्रीड़ा - अक्खरिका वुच्चति आकासे वा पिडियं वा अक्खरजाननकीळा, दी. नि. अट्ठ. 1.78; अक्खरि कायपि कीळन्ति, चूळव. 22; - पट्टिका स्त्री./नपुं. [अक्षरपट्टिका], अभिलेख-युक्त पट्टिका, अक्षरपट्टी- तत्थ तं अक्खरपट्टकं खु. पा. अट्ठ. 128, पाठा. पट्टक; - पदनियमित त्रि., पद्यात्मक रूप से व्यवस्थित, छन्दःशास्त्रीय नियमों द्वारा नियमित - अक्खरपदनियमितगन्थितेन वचनेन अभासीति, खु. पा. अट्ठ.94; - प्पभेद पु., तत्पु. स., शिक्षा और निरुक्ति, ध्वनिविज्ञान और व्युत्पत्तिविज्ञान - अक्खरप्पभेदोति सिक्खा च निरुत्ति च. सु. नि. अट्ठ.2. 153; - पिण्ड पु., तत्पु. स.. एक दूसरे के साथ मिले हुए अक्षरों का समूह - अक्खरानं सन्निपातसङ्घातं अक्खरपिण्डञ्च जानाति, ध. प. अट्ठ. 2.321; - विपत्ति स्त्री., तत्पु. स. [अक्षरविपत्ति], अक्षरों के प्रयोग में हेर-फेर - अक्खरविपत्तियं हि सति अत्थस्स दुन्नयता होति, क. व्या. 1; - विसोधनी पञासामी-विरचित एक व्याकरण-ग्रन्थ का नाम - सो येवाहं अक्खरविसोधनि नाम गन्धं ..., सा. वं. 141; - सञात त्रि., तत्पु. स. [अक्षरसंज्ञात], अक्षरों के द्वारा अच्छी तरह से ज्ञात (अर्थ) - अत्थो अक्खरसातो, क. व्या. 1; - सन्निपात पु., तत्पु. स., संज्ञा, अक्षरों का
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