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अक्खग्गकील
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अक्खमद
अक्खग्गकील पु.. [अक्षाग्रकील], धुरे के अग्रभाग में लगी
हुयी कील, अक्षकील-अक्खग्गकीले आणीस्थि अभि. प. 374. अक्खच्छिन्न त्रि., कर्म. स. [अक्षछिन्न], भग्न धुरा, टूटा हुआ धुरा - यथा साकटिको मट्ठ समं हित्वा महापथं, विसमं मग्गमारुरह, अक्खच्छिन्नोव झायति, स. नि. 1(1).70; मि. प.70. अक्खण पु., खण का निषे०, तत्पु. स. [अक्षण], अनुचित क्षण, गलत क्षण, अनुपयुक्त समय, असंगत समय, दुर्भाग्यपूर्ण क्षण - अथक्खणे दस्सयसे विलापं, जा. अट्ठ. 4.16; अढिमे, भिक्खवे, अक्खणा असमया ब्रह्मचरियवासाय, अ. नि. 3(1). 59; अक्खणो असमयो ब्रह्मचरियवासाय, दी. नि. 3.211 (कहीं-कहीं आठ की जगह नौ अनुपयुक्त क्षणों की संख्या मिलती है) - नव अक्खणा असमया ब्रह्मचरियवासाय, दी. नि. 3.210; - दीपनगाथा स्त्री., सद्धम्मो. में गाथा संख्या 4 से 52 तक के खण्ड का शीर्षक; -सम्मत त्रि., असमयानुकूल - अनोकासभावेन एते अक्खणसम्मतं, सद्धम्मो. 15. अक्खणवेधी त्रि. [अक्षणवेधिन], अमोघ आघात करने वाला, अचूक निशानेबाज जो क्षण में वेध करता है, समय चूके बिना लक्ष्यवेध करने वाला - योधाजीवो दूरे पाती च होति अक्खणवेधी च महतो च कायस्स पदालेता, अ. नि. 1(1). 320; अक्खणवेधीवालवेधिधनुग्गहे, जा. अट्ठ. 1.68. - टि. यह चार प्रकार के धनुर्धरों में से एक है - अक्खणवेधिवालवेधिसरवेधिसद्दवेधिनो, जा. अट्ठ. 5.125; इसकी व्यु. अनिश्चित है, अट्ठकथाओं में 'अक्खणा वुच्चति विज्जु' रूप में इसका व्याख्यान संदेहास्पद है, क्योंकि पालि-निकायों में उस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग नहीं मिलता है। पालि-अंग्रेजी शब्दकोष में इसका निर्वचन संस्कृत अक्षन् से बताया गया है, जो लक्ष्य के रूप में बैल की आँख का द्योतक है; - वेधिता स्त्री॰, भाव., अचूक लक्ष्यवेध करने की स्थिति - सिप्पञ्च सील अक्खणवेधिताय, नेत्ति. 47. अक्खणा स्त्री./नपुं.. [अक्षणा], बिजली, विद्युत - अक्खणा विज्जु, अभि. प. 48; अक्खणा वुच्चति विज्जु, जा. अट्ठ. 2.75; अ. नि. 1(1).320. अक्खण्ड द्रष्ट. अखण्ड (आगे). अक्खत' त्रि., खत का निषे., तत्पु. स. [अक्षत], सुरक्षित, अदूषित, स्वस्थ, सकुशल - अक्खतं अनुपहतं अत्तानं परिहरति, अ. नि. 1(1).331; अक्खतो पण्डितो सदाति, अ. नि. 2(2).84; अ. नि. अट्ठ. 3.124.
अक्खत नपुं.. [अक्षत]. छिलका न निकाला हुआ या भूसी न निकाला हुआ यव (जौ) का दाना, यवान्न, भूजा हुआ जौ - लाजो सियाक्खतं, अभि. प. 463; लाजासु चक्खतं. अभि. प. 1133. अक्खदस्स पु.. [अक्षदर्शक अथवा अक्षदृक्], न्यायाधीश, विवादों को हल करने वाला व्यक्ति - न्यासादीनं
विवादानमक्खदस्सो पदहरि अभि. प. 341; राजानो नाम .... अन्तरभोगिका अक्खदस्सा महामत्ता, पारा. 53. अक्खदायिकपेतवत्थु नपुं., पे. व. के चौथे वर्ग की तेरहवीं कथा का शीर्षक: पे. व. 158; पे. व. अट्ठ. 241-42. अक्खदेवी पु., [अक्षदेविन्, अक्षयू], जुआड़ी, धूर्त, अक्षधूर्त, जुए के खेल में लगा रहने वाला - धुत्तो अक्खधुत्तो कितवो जूतकारक्खदेविनो, अभि. प. 531. अक्खधुत्त पु., [अक्षधूर्त], जुआड़ी, द्यूतकार, जुआ के खेलने में धूर्त - धुत्तो अक्खधुत्तो कितवो, अभि. प. 531; इत्थिधुत्तो सुराधुत्तो, अक्खधुत्तो च यो नरो, सु. नि. 106; जा. अट्ठ. 3.227; अक्खधुत्ता अक्खेहि दिब्बिसु, दी. नि. 2.257. अक्खन्ति/अखन्ति स्त्री., खन्ति का निषे. [अक्षान्ति], क्षान्ति का अभाव, व्याकुलता, असहिष्णुता, असन्तोष - अहुदेव अक्खन्ति अहु अप्पच्चयो, अ. नि. 1(1).269. अक्खपराजित त्रि., [अक्षपराजित], जुए के खेल में हारा हुआ, द्यूतक्रीड़ा में पराजित - जूते अक्खपराजितो, जा. अट्ठ. 3.171. अक्खबन्धनयोत्त नपुं.. तत्पु. स., रथ की धुरी की रस्सी
अक्खबन्धनयोत्तेन एकतो बन्धित्वा .... जा. अट्ठ. 1.191. अक्खभग्ग त्रि., ब. स. [अक्षभग्न], टूटी धुरी के साथ, टूटी धुरी वाला - पारं नावा अक्खभग्गञ्च यानं, जा. अट्ठ. 5.430. अक्खभञ्जन नपुं., [अक्षभञ्जन], धुरी का टूटना - अयं
वाणिजो अक्खभञ्जनेन अटवियं किलमति, पे. व अट्ठ. 242. अक्खम त्रि., खम का निषे. [अक्षम], अक्षम, असमर्थ, सहन करने में असमर्थ, बिना सहनशक्ति वाला, क्षमता-विहीन - ऊनवीसतिवरसो, ... पुग्गलो अक्खमो होति सीतस्स उण्हस्स .... महाव. 98; अक्खमो अप्पदक्खिणग्गाही अनुसासनि. पारा. 278; अक्खमा पटिपदा, दी. नि. 3.182; अक्खमादीस पधानकरणकाले सीतादीनि न खमतीति अक्खमा, दी. नि. अट्ठ. 3.186. अक्खमद पु., [अक्षमद]. जुए का मद, द्यूत की उत्तेजना - ते पाविसु अक्खमदेन मत्ता, जा. अट्ठ. 7.175.
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