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अक्कमन
अक्कोसति
कुचलता है - जलितम्पि जातवेदं अक्कमति, मि. प. 208. अक्कमन नपुं.. [आक्रमण], कदम-कदम चलकर थोड़ी दूर पर जाना, पग धरना, डग भरना, - अक्कमनअक्कमनपदवारे हत्थतलानि उपनामेसु. जा. अट्ठ. 1.72; तीरप्पदेसेसु द्विपदचतुप्पदानं अक्कमनहाने ..., जा. अट्ठ. 1.324; तुल. अक्कन्त. अक्कवाक पु./नपुं. तत्पु. स. [अर्कवल्क], आक के पौधे की छाल - ... अक्कवाके गहेत्वा जियं करोन्ति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 3.102; रत्तिं भुञ्जन्तापि केससण्ठानं अक्कवाकं वा ... जिगुच्छन्ति, विभ. अट्ट, 222. अक्कुट्ट त्रि., आ + कुस के भू. क. कृ. का निषे०, बुरी तरह से डांटा-फटकारा गया अथवा निन्दा किया गया व्यक्ति - असमाहि फरुसाहि वाचाहि अक्कट्ठो परिभासितो, मि. प. 209; अक्कुट्ठोति दसहि अक्कोसवत्थूहि अभिसत्तो, सु. नि. अट्ठ. 2.87. अक्कुद्ध त्रि., कुद्ध का निषे. [अक्रुद्ध], जो क्रुद्ध न हो या क्रोधाभिभूत न हो - अकुद्धस्स मुखं पस्स, कथं कुद्धो करिस्सती ति, जा. अट्ठ. 2.292; सो अप्पमत्तो अक्कुद्धो, तात किच्चानि कारय, जा. अट्ठ. 5.108, पाठा. अकुद्ध; - मानस त्रि., ब. स., क्रोध से मुक्त मन वाला - यो अकुद्धमानसो हुत्वा अधिवासेति, ध. प. अट्ट. 2.377. अक्कुल पु., आश्चर्य या विस्मयातिरेक में अथवा किसी को आतंकित करने या दहलाने के लिए 'अक्कुलो पक्कुलो' के अन्दर प्रयुक्त चीत्कार, कोलाहल या चीख को सूचित करने वाला व्याकुलता-सूचक शब्द - अक्कुलो पक्कुलो ति अक्कुलपक्कुलिकं अकासि, उदा. 74; 'अक्कुलो पक्कुलोति भिंसापेतुकामताय एवरूपं सदं अकासि, उदा. अट्ट. 53; तुल. आकुल व्याकुल. अक्कोध/अकोध पु.. कोध का निषे. [अक्रोध], क्रोध का अभाव, सौम्यता, सदयता - अक्कोधेन जिने कोधं ध. प. 223; मि. प. 123; जा. अट्ठ. 3.240; स. नि. 1(1).277. अक्कोधन/अकोधन त्रि., कोधन का निषे. [अक्रोधन], क्रोध से मुक्त, क्रोधरहित - अक्कोधनं वतवन्तं, सीलवन्तं अनुस्सद, ध. प. 400; सु. नि. 629; अक्कोधनो विगतखिलोहमस्मि. सु. नि. 19; सत्त कप्पे ब्रह्मलोके, तस्मा अक्कोधनो अहन्ति, जा. अट्ठ. 2.163; मनुस्सभूतो समानो अक्कोधनो अहोसि.दी. नि. 3.119; स. नि. 1(1).278; - ना स्त्री., क्रोध न करने वाली नारी - अक्कोधना पुजवती,
पण्डिता अत्थदस्सिनी, जा. अट्ठ. 6.304; -- मनुग्घाती त्रि., वह मनुष्य, जो क्रोध से मुक्त होकर किसी भी प्राणी को चोट नहीं पहुंचाता है - अक्कोधनमनुग्घाती, धम्मपण्डरछत्तको,
जा. अट्ठ. 7.142. अक्कोधसुत्त नपुं., स. नि. के एक सुत्त-विशेष का शीर्षक, स.
नि. 1(1).277. अक्कोधनसुत्त नपुं., स. नि. के एक सुत्त-विशेष का शीर्षक,
स. नि. 2(2).238. अक्कोधूपायास पु.. तत्पु. स., क्रोध के दुःख से मुक्ति, क्रोधजनित विपत्ति का अभाव - अक्कोधूपायासं निस्साय
कोधूपायासो पहातब्बो ति, म. नि. 2.27. अक्कोस पु.. [आक्रोश], दुर्वचन, निन्दा, अपशब्द अथवा अपशब्दों का प्रयोग, डांटना-फटकारना - परिभासनमक्कोसे. अभि. प. 899; अक्कोसं बधबन्धञ्च, अदुट्ठो यो तितिक्खति, ध. प. 399; सु. नि. 628; अक्कोसं तितिक्खति.... अञदत्थ अक्कोसमेव अलत्थ म. नि. 2.260; अञमज अक्कोसा होन्ति, अ. नि. 2(1).62; अथ खो अक्कोस व परिभास व पटिलभति, मि. प. 8. अक्कोसक त्रि., [आक्रोशक, आङ् + क्रुश, आक्रोशे], भर्त्सना करने वाला, गाली देने वाला, केवल स. प. में 'अक्कोसकपरिभासक' रूप में प्राप्त - अक्कोसकपरिभासको समणब्राह्मणानं, अ. नि. 1(2).66; 2(1).232; 3(1).6; 3(2).144; अक्कोसिकपरिभासिका समणब्राह्मणानं. अ. नि. 1(2).67; अक्कोसकपरिभासकानि ... कुलानि, विभ. 277; विभ. अट्ठ, 323; - भारद्वाजो पु., एक ब्राह्मण का नाम - अक्कोसकभारद्वाजो ब्राह्मणो, स. नि. 1(1).188; - वग्ग पु.. अ. नि. के एक वग्ग का शीर्षक, अ. नि. 2(1).232. अक्कोसकभारद्वाजवत्थु नपुं.. ध. प. अट्टकी एक कथा
का शीर्षक, ध. प. अट्ठ. 2.376-78. अक्कोसति आ + Vकुस का वर्त.. प्र. पु., ए. व. [आक्रोशति]. निन्दा करता है, गाली देता है, अपशब्द बोलता है - यस्मिं ते, तात, ठाने ठितो नन्दो अक्कोसति, जा. अट्ठ. 1.221; भिक्खु गिही अक्कोसति परिभासति, महाव. 433; - न्ति ब. व. - सब्बे अम्हेयेव अक्कोसन्तीति, जा. अट्ठ. 5.103; तथागतं अक्कोसन्ति परिभासन्ति रोसेन्ति विहेसेन्ति, म. नि. 1.194; - न्तं वर्त. कृ., वि. वि., ए. व. - यं खीणासवस्स अक्कोसन्तं वा अपच्चक्कोसनं, ध. प. अट्ठ. 2.368; - न्ते ब. व. -- परेसं पुत्ते अक्कोसन्ते वा पहरन्ते वा. मि. प. 1533; - थ अनु., म. पु.. ब. व. - एत्थ ... कल्याणधम्मे
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