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अकुसल
अकुसल
चेतना स्त्री., कर्म. स. [अकुशलचेतना], अकुशल-चैतसिकों या चित्तधर्मों का नेतृत्व करने वाला चेतना नामक प्रमुख चैतसिक जो कर्मो के अभिसंस्करण में मुख्य भूमिका निभाता है, इसे अपुण्याभिसंस्कार-चेतना भी कहा जाता है - एवमेव अकसलचेतनाय अभावेन .... ध. प. अट्ठ. 2.16; म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).209; - चेतसिक नपुं, कर्म स. [अकुशलचैतसिक]. बारह अकुशल चित्तों के साथ संप्रयुक्त चौदह अकुशल चित्तवृत्तियां, मोह, अहीक, अनपत्राप्य, औद्धत्य, लोभ, दृष्टि, मान, द्वेष, ईर्ष्या, मात्सर्य, कौकृत्य, स्त्यान, मृद्ध तथा विचिकित्सा - चुद्दसिमे चेतसिका अकुसला नाम, अभि. ध. स. (पृ.) 8; - धम्म पु., कर्म. स. [अकुशलधर्म]. लोभ, द्वेष एवं मोह से संप्रयुक्त चित्त तथा चैतसिक - कुसला धम्मा अकुसला धम्मा, अव्याकता धम्मा, ध. स. 1; असब्मा चाति अकुसलधम्मा च निवारेय्य, ध. प. अट्ठ. 1.311; - धम्मसुत्त नपुं, एक सुत्त का नाम, स. नि. 3(1).17; - धातु स्त्री., कर्मस. [अकुशलधातु], ऐसे मूल-तत्त्व जिनकी प्रकृति पापमयी हो - तत्थ कतमा तिस्सो अकुसलधातुयो? कामधातु, ब्यापादधातु, विहिंसाधातु, विभ. 420-21, तुल. अकुसलत्तिक तथा अकुसल-सङ्कप्प; - परिच्चाग पु., तत्पु. स. [अकुशलपरित्याग], अकुशल पापधर्मो का पूर्णपरित्याग - अकुसलपरिच्चागो कुसलवीमंसाय च समाधिन्द्रियस्स च साधारणं पदहानं, नेत्ति. 42; - पुच्छा स्त्री., तत्पु. स. [अकुशलपृच्छा], पापमय धर्मों से सम्बद्ध प्रश्न - अपरापि तिस्सो पुच्छा-कुसलपुच्छा, अकुसलपुच्छा, अब्याकतपुच्छा, महानि. 251; - मूल नपुं, कर्म स. [अकुशलमूल], दुष्कर्मों के लोभ, द्वेष एवं मोह नामक तीन मूल उत्प्रेरक या प्रयोजक - तीणि अकुसलमूलानि-लोभो, दोसो, मोहो, विभ. 233; 234; 396; तीणि ... अकुसलमूलानि ... लोभो अकुसलमूलं, दोसो अकुसलमूलं, मोहो अकुसलमूलं, । अ. नि. 1(1).231; म. नि. 1.59; - रासि पु., तत्पु. स. [अकुशलराशि], पाप-कर्मों की राशि, पापकर्मो का संचय -- केवलो हायं, भिक्खवे, अकुसलरासि यदिदं पञ्च नीवरणा, अ. नि. 2(1).60; अकुसलरासी ति, भिक्खवे, वदमानो पञ्च नीवरणे वदमानो वदेय्य. स. नि. 3(1).224; ध. स. अट्ठ. 406; - टि. कामच्छन्द, व्यापाद, स्त्यान-मृद्ध औद्धत्यकौकृत्य तथा विचिकित्सा, ये पांच नीवरण हैं; इन्हीं के समुच्चय को अकुशल-राशि कहा गया है; - वितक्क पु., कर्म. स. [अकुशलवितर्क], पाप से परिपूर्ण चिन्तन का प्रारम्भिक भाग - तयोमे, भिक्खवे, अकुसलवितक्का, इतिवु.
53; तयोमे ... अकुसलवितक्का-कामवितको ब्यापादवितक्को विहिंसावितक्को, स. नि. 2(1).86; नेत्ति. 103; सु. नि. अट्ठ. 2.36; - टि. कामवितर्क, व्यापादवितर्क तथा विहिंसावितर्क इन तीनों को अकुशलवितर्क कहा गया है, तुल. अकुसलधातु तथा अकुसल-सङ्कप्प; - विपाक (= पाक) पु., तत्पु. स. [अकुशलविपाक], काम भूमि के अहेतुक एवं अव्याकत चित्तों में परिगणित बारह अकुशल कर्मों के कुल सात प्रकार के अकुशलविपाक - सत्ताकुसलपाकानि, अभि. ध. स. 3; - विपाकअब्याकतं ध. स. के एक खण्डविशेष का शीर्षक, ध. स. 146; - विपाकाहेतुकचित्त नपुं, कामावचरभूमि में बारह अकुशल चित्तों के सात प्रकार के अकुशलविपाक जो अहेतुक बतलाये गए हैं - इमानि सत्तपि अकुसलविपाक (अहेतुक) चित्तानि, अभि. ध. स. 3; - विपाकुपेक्खा स्त्री., तत्पु. स. [अकुशलविपाकोपेक्षा], अकुशल कर्मों के विपाकों से सम्बद्ध उपेक्षामयी मनोवृत्तिसेसा छ अकुसलविपाकुपेक्खा अब्बोहारिका, जा. अट्ठ. 5.264; - वेर नपुं., कर्मस. [अकुशलवैर], वैर की पापमयी मनोवृत्ति - वेरबहुलोति पुग्गलवेरेनपि अकुसलवेरेनपि बहुवेरो, अ. नि. अट्ठ. 3.82; - सङ्घात त्रि., कर्म स. [अकुशलसङ्ख्यात], अकुशलरूप में पहचाने गये धर्म - अकुसलसङ्घाता ये धम्मा..., अ. नि. 3(1).181; - सङ्गह पु., तत्पु. स. [अकुशलसंग्रह], अकुशल धर्मों का संग्रह, अभि. ध. स. नामक पुस्तक के समुच्चयपरिच्छेद नामक सातवें अध्याय के प्रथम खण्ड का शीर्षक, अभि. ध. स. 49; - सञ्चेतनिक त्रि., [अकुशलसञ्चेतनिक], अकुशल कायकर्म द्वारा अभिसंस्कृत तीन प्रकार के दुःखमय विपाक, वाणी के चार प्रकार के दुःखमय विपाक तथा ऐसे ही मनोकर्मों के तीन प्रकार के दुःखमय विपाक अकुशलसञ्चेतनिक हैं - तत्र, भिक्खवे, तिविधा कायकम्मन्तसन्दोसब्यापत्ति ... चतुबिधा वचीकम्मन्तसन्दो सब्यापत्ति ... तिविधा मनोकम्मन्तसन्दोसब्यापत्ति अकुसलसञ्चेतनिका दुक्खुद्रया दुक्खविपाका होति, अ. नि. 3(2).260; - सज्ञा स्त्री., कर्म. स. [अकुशलसंज्ञा], पापपूर्ण या पापमयी चेतना, पाप से भरा विचार, कामसंज्ञा, व्यापादसंज्ञा और विहिंसासंज्ञा, ये तीन प्रकार की अकुशल संज्ञाएं हैं - तिस्सो अकुसलसाकामसआ ब्यापादसा विहिंसासा, नेत्ति. 103; - सील पु., [अकुशलशील], पाप से परिपूर्ण व्यक्ति अथवा पापमय व्यवहार - इमे अकुसला सीला, तमहं, थपति, वेदितब्बन्ति वदामि, म. नि. 2.226; पाठा. अकुसला सीला; - हेतु पु.,
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