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अकिरिया
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अकिरिया 1. स्त्री निषे, तत्पु, स. [अक्रिया] वह चेतना, जो उत्पन्न होकर अकुशल कर्मों के क्रियापथ का उपच्छेदन कर देती है, समस्त अकुशल कर्मों से चित्त की विरति उप्पज्जित्वा तं किरियं कातुं न देति, किरियापथं पच्छिन्दतीति अकिरिया, ध. स. अ. 262 अकुसलानं धम्मानं अकिरिया, अ. नि. 3(1).21; अनेकविहितानं पापकानं अकुसलानं धम्मानं अकिरियं वदामि, पारा. 3; अकिरियाय धम्मं देखेति महाव. 309 टि. यहां अक्रिया' का विशेष अर्थ इस रूप में अभिव्यक्त है शारीरिक, वाचिक एवं मानसिक आदि सभी प्रकार के पापकर्मों से विरत रहना ही बुद्ध अभिप्रेत अक्रिया है - कायदुच्चरितस्स वचीदुच्चरितस्स मनोदुच्चरितस्स, अनेकविहितानं पापकानं अकुसलानं धम्मानं अकिरियं वदामि अ. नि. 1(1).79; 2. स्त्री.. [ अक्रिया ], कर्त्तव्यविमुखता, अनुचित क्रिया, अकरणीय क्रिया
रोन हि महाराज, भगवता किरिया देव कता, नो अकिरिया मि. प. 168 3. स्त्री. अक्रिया का सिद्धान्त बुद्धकालीन छः धर्माचार्यों में से एक पूरणकस्सप के मत के रूप में कुशल तथा अकुशल कर्मों के किसी भी प्रकार के विपाक के न प्राप्त होने के मत को अक्रिया की संज्ञा दी गयी है। कुछ विद्वानों ने इसकी सङ्गति गीताप्रतिपादित निष्काम कर्मयोग के साथ स्थापित करने का प्रयास भी किया है- पूरणो कस्सपो सन्दिहिकं सामञ्ञफलं पुट्ठो समानो अकिरिय व्याकासि दी. नि. 147 अकिरियाय सण्ठहन्ति, अ. नि. 1 (1).202, द्रष्ट, अकिरियदिट्ठि एवं अकिरियवाद ऊपर, अकिलन्त त्रि, निषे, तत्पु० स० [ अक्लान्त], न थकने वाला, अश्रान्त, अनिद्रालु जागरूक - किलन्तरूपो कायेन, अकिलन्तोव चेतसा, वि. व 1152 काय त्रि. ब. स. [अक्लान्तकाय], थकान-रहित शरीर वाला, तरोताजा शरीर वाला सुखिनो बोधिसत्तमाता होति अकिलन्तकाया. दी. नि. 2.10.
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अकिलासु त्रि. तत्पु. स. [अग्लास्नु + स्नु]. थकावटरहित, नहीं थकने वाला, उद्योगी- निक्कोसज्जो अकिलासु, अभि. प. 516, अकिलासु विन्दे हृदयस्स सन्तिन्ति, जा. अड. 1.116: अकिलासुनोति निकोसज्जा आरद्ववीरिया, तदे अकिलासुनो अहेसु... धम्मं देसेतु, पारा. 9; करणीयमेत ब्राह्मणेन पधानं अकिलासुना ,स. नि. 1 (1).56; योगिना
धम्मदेसनासु अकिलासुना भवितब्ब. मि. प. 350. अकिलिट्ठ त्रि, निषे, तत्पु० स० [ अक्लिष्ट], पवित्र, अघृणित, मलरहित वसनक्रि. ब. स.. शुद्ध वस्त्र या स्वच्छ वस्त्र
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धारण करने वाला नि. अड. 2.184. अकिस्सव त्रि, निषे, तत्पु, स. (व्यु, संदिग्ध ) प्रज्ञाविहीन, ज्ञानविहीन प्रमादी अप्पमेय्यं पमादिनं नियुतं तं म अकिस्सवन्ति, स. नि. 1 ( 1 ). 175; नेत्ति. 109; अकिस्सवंति किस्सवा वुच्चति पञ्ञ, निप्पञ्ञति अत्थो, स. नि. अट्ठ
1.189.
सुचिवसनेति अकिलिट्ठवसने
अकुतो / अकुतोचि
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अकुक्कु-कत त्रि.. निषे, तत्पु, स, केवल किसी निर्धारित समय-विशेष के लिए न तैयार किया गया अकुक्कुकतेन अत्थतं होति कठिन, महाव. 333. अकुक्कुच्च त्रि., कुक्कुच्च का निषे.. तत्पु, स. [ अकौकृत्य ]. ], मानसिक अनुताप से रहित पश्चात्ताप के मनोभाव से मुक्त, दुष्कृत्यों को न करने वाला अकुकतभावो अकुक्कुच्च अकुच्छितकिरियाय वा चेतसो अविप्पटिसारो अमनोविलेखो महानि, 158; अकुक्कुच्चोति हत्थकुक्कुच्चादिविरहितो महानि, अट्ठ. 256; यस्सेतं कुक्कुच्चं पहीनं समुच्छिन्नं.. आणग्गिना दङ्कं सो दुच्चति अकुक्कुच्चोति महानि, 159: द्रष्ट. कुक्कुच्च (आगे) क. त्रि.. कुक्कुच्चक का निषे.. ब. स॰ [अकौकृत्यक], 1. संदेह से रहित, अशंकालु, दुष्कृत्यों, कदाचारों या अनुतापों से मुक्त कोसज्जबहुला अञ्ञमज्ञ न चोदेन्ति न सारेन्ति अकुक्कुच्चका होन्ति, अ. नि. अड 1.71; 2. केवल स. पू. प. में ही प्रयुक्त, जात त्रि. दोष या अशुद्धि के बिना ही उत्पन्न सो तत्थ पस्तेय्य महतिं साललट्ठि उजुं नवं अकुक्कुच्चकजातं, अ. नि. 1 (2).230. अकुटिल त्रि. कुटिल का निषे, तत्पु. स. [ अकुटिल ]. शा. अ. अवक्र, सरल, सीधा दहरा रुक्खा च वुद्धा च, अकुटिला चेत्थ पुष्पिता, जा. अट्ठ. 7.302; अवङ्कस्स अकुटिलस्स दहचापसमारुळहस्स मि. प. 115; ला. अ. निष्कपट, ईमानदार उजुकेसु अकुटिलेसु जा. अट्ठ 39- ता स्त्री. भाव. [अकुटिलता ]. निष्कपटता, सरलता, सीधापन अज्जवता अजिम्हता अवडता अकुटिलता अयं वुच्चति अज्जवो, ध. स. 1346. अकुतूहल त्रि.. कुतूहल का निषे [ अकुतूहल] कौतूहल से रहित, आश्चर्य से रहित, स्वाभाविक, स्थिर ਚਲਾਈ सूरमिच्छन्ति मन्तीसु अकुतूहलं जा. अड. 1.389, अकुतूहलो अविकिण्णवाचो. जा. अड्ड. 1.370. अकुतो / अकुतोचि निपा०, स० पू० प० के रूप में ही प्राप्त [ अकुतः ], कहीं से भी नहीं उपदव त्रि. सभी तरह से उपद्रव रहित कच्चि रटुं अनुपपीछे अकुतोचिउपदवं. जा.
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सु.
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