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अकिच्च
जा. अट्ठ. 7.57; - टि. संभवतः यह शब्द सं. आकर्षिक (मुद्रानियन्त्रक) शब्द से सम्बद्ध हो सकता है तथा बलपूर्वक राजस्व ले जाने वाले अधिकारी के आशय को प्रकट करने वाला माना जा सकता है.
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अकिच्च नपुं निषे, तत्पु, स. [ अकृत्य], नहीं करने योग्य, अकरणीय अकिच्चं करोति किच्चं अपराधेति, अ. नि. 1 (2). 77; यहि किच्चं अपविद्ध, अकिच्चं पन कयिरति, ध. प. 292; अकिच्वं ते न सेवन्ति, किच्चे सातच्चकारिनो, ध. प. 293 - कर त्रि., [ अकृत्यकर], व्यर्थ, निरर्थक, बेकार - सम्पत्ते काले वायामो अकिच्चकरो भवति. मि. प. 69; भेसज्जानि... खीणायुकस्स अकिच्चकरानि भवन्ति मि. प. 151 कारी त्रि., [अकृत्यकारिन्] अकरणीय को करने वाला, जो करने योग्य नहीं है उसे करने वाला भवं खो पन राजा एवं सकण्टके जनपदे सउपपीळे बलिमुद्धरेय्य, अकिच्चकारी अस्स तेन भवं राजा दी. नि. 1.120; हनामि तं मित्तदुब्भिं अकिच्चकारि, यो तादिसं कम्मकतं न जाने ति जा. अट्ठ. 4.233; अकिच्चकारी दुम्मेधो, रट्ठा पवनमागतो.
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जा. अट्ठ. 7.290.
अकिच्छलाभी त्रि, निषे, तत्पु० स० [अकृच्छ्रलाभी], बिना कठिनाई के ही या सरलता एवं सहजता से लाभ पाने वाला अकिच्छलाभी अकसिरलाभी, अ. नि. 2 ( 1 ) 125. अकिञ्चन त्रि, निषे, ब. स. [अकिञ्चन ], जिसके पास अपना कुछ न हो, दरिद्र, महत्त्वहीन, इच्छा से मुक्त अकिञ्चनो जीविकत्थाय पाणं हनति, मि. प. 207; सकिञ्चनस्सेव भयं नाकिञ्चनस्स, जा. अ. 6.52; अकिञ्चनं अनादानं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं, ध. प. 396.
अकिञ्चि नपुं,, निषे, तत्पु० स० [ अकिञ्चित्], कुछ भी नहीं - न ब्राह्मणस्सेतदकिञ्चि सेप्यो, घ. प. 390 - टि. जहांतहां 'अकिञ्चन' का समानार्थक भी है तथा श्रेय अर्थात् निर्वाण की स्थिति का प्रत्यायक है.
अकितव पु०, निषे, तत्पु० स० [ अकितव], वह, जो जुआड़ी न हो, जुआ न खेलने वाला अनक्खाकितवे तात, असोण्डे अविनासके, जा. अट्ठ. 5.111; अनक्खाकितवेति अनक्खे अकितवे अजुतकरे चेद, जा. अड. 5.113. अकित्ति स्त्री. निषे, तत्पु, स. [ अकीर्ति], अपयश, बदनामी - या एतिस्सा अकिति मव्हेसा अकिति पाचि. 291 - सञ्जननी स्त्री [अकीर्तिसञ्जननी] अपयश-निर्मात्री, अपयश को उत्पन्न करने वाली सन्दिद्विका धनजानि अकित्तिसज्जननी, दी. नि. 3.138 प. स. अनु. 404.
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अकिरिय
अकित्ति' पु. [ अगस्त्य ऋषि], एक ब्राह्मण का नाम, भारतीय ऋषियों की परम्परा में आने वाले एक ऋषि का नाम - अकित्ती तिस्स नाम करिसु जा. अड. 4.212, अकितिपण्डितो पन अहमेव अहोसिन्ति, जा. अट्ठ 4.218; - जातक नपुं०, जातक संख्या 480 का शीर्षक कित्तिजातकादीहि चायमत्थो दीपेतब्बो, जा. अट्ठ. 5.230; - तित्थ नपुं., कर्म. स., ऋषि अकित्ति के नाम पर वाराणसी के एक घाट का नाम येन तित्थेन नदिं ओतिष्णो, तम्पि अकित्तितित्थं नाम जात जा. अड. 4.212: द्वार नपुं. कर्म. स. एक द्वार का नाम भगिनिं गत्वा बाराणसितो येन द्वारेन निक्खमि तं अकित्तिद्वारं नाम जातं, जा. अट्ठ 4.212. अकित्तिम त्रि, निषे तत्पु, स. [ अकृत्रिम ] स्वाभाविक, नैसर्गिक सो पन अपोरिसताय अकित्तिमो सयंजातो. वि. व. अ. 231.
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अकिरिय क्रि, निषे, ब. स. [ अक्रिय ] निष्क्रिय, अकर्मण्य, आलसी ये केचि पापका असंयुता अहिरिका अकिरिया
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दुज्जना मनुस्सा, मि. प. 234 पुरिसं विवर्ट पाकट अकिरियं अरहरस मि. प. 276: यस्मा कायदुच्चरितादीनं अकिरियं वदति तस्मा, पारा. अट्ठ. 1.98; - दिट्ठि स्त्री०, तत्पु. स. [ अक्रियादृष्टि ] कुशल तथा अकुशल कर्मों के विपाक के असद्भाव का सिद्धान्त अक्रियावाद अकिरियादिविज्य पजहति विभ. अड. 189: रूप त्रि.. कर्म. स. [ अक्रियरूप] अकरणीय न करने योग्य, अनुचित - अकिरियरूपो पमदाहि सन्धवो, जा. अट्ठ. 3.467; - वाद' त्रि. निषे. ब. स. [ अक्रियावाद] कर्मों के विपाक के असद्भाव के मत या सिद्धान्त को मानने वाला, अक्रियावादी
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- अकिरियवादो समणो गोतमोति अ. नि. 3 ( 1 ) 21 गोतमो अकिरियवादो अकिरियाय धम्मं देसेति महाव. 309: सब्बेपेते अत्थतो अहेतुकवादा अकिरियवादा च नत्थिकवादा च सन्ति, दी. नि. अट्ठ. 1.137: - वाद' पु०, कर्मों के विपाक के असद्भाव का मत या सिद्धान्त नत्धिकवादो अहेतुकवादो अकिरियावादो, म० नि० अट्ठ. (उप. प.) 3.89, द्रष्ट. अकिरियदिट्टि ऊपर वादी [अक्रियावादी], वह, जो कर्मों के विपाक के सिद्धान्त को नहीं मानता है, अक्रियावादी -किरियवादी चाह, ब्राह्मण, अकिरियवादी चा 'ति, अ. नि. 1 ( 1 ). 79 सुद्धि स्त्री तत्पु. स. [ अक्रियाशुद्धि]. अक्रिया के द्वारा शुद्धि या पवित्रता, क्रिया के बिना ही शुद्धि अच्यन्तसुद्धिं संसारसुद्धिं अकिरियसुद्धिं सरसतवाद न वदन्ति न कथेन्ति न भणन्ति, महानि० 70 ( रो.).
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