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उन्हें शरारत करने की आदत थी। फादर के कहने पर एक सेठ के यहाँ किसी काम से कुछ पूछने जाना पड़ा। उम्र कम थी इसलिए उन्हें खेलने जाने की जल्दी थी, और वह सेठ जवाब नहीं दे रहे थे। वे पिल्ले के साथ खेल रहे थे। तो ये चिढ़ गए और अंत में पिल्ले की पूँछ दबा दी। उस पिल्ले ने सेठ को काट खाया। उसके बाद सेठ पिल्ले को मारने लगे। तो सच में गुनहगार कौन है वह पता नहीं चलता इसलिए निमित्त को काटते हैं। इस प्रकार बचपन से ही कर्ता व निमित्त से संबंधित सिद्धांतों के बारे में समझना शुरू हो गया था।
बचपन में अगर कोई उनका तौलिया आराम से काम में लेता था और वे खुद दुःखी होते थे, तो उस पर से उन्हें ज्ञान पता चला कि, 'मैं भुगत रहा हूँ, तो भूल मेरी है!' ।
न्याय ढूँढने जाते तब मार पड़ती थी इसलिए समझ में आया कि जो हो रहा है, वह अपने कर्मों के उदय के अनुसार ही है। ___बचपन में पेन (चॉक के टुकड़े) से खेलते थे। दूर से छोटी डिब्बी में पेन (चॉक के टुकड़े) के टुकड़े डालते थे। वे खुद निशाना लगाए बगैर डालते थे फिर भी पेन डिब्बी में गिरती थी। उन्होंने सोचा कि मुझे तो यह आता नहीं है तो यह किया किसने?
खेल खेलते-खेलते पता चला कि यह सब व्यवस्थित है।
उनके जीवन की छोटी-बड़ी घटनाओं के बारे में जानने के बाद प्रश्न तो होगा ही न, कि किस आधार पर उन्हें यह अद्भुत ज्ञान प्रकट हुआ? दादाश्री कहते हैं कि, 'हमें तो यह ज्ञान ‘बट नैचुरल', कुदरती रूप से प्रकट हुआ है'। वे दिल के सच्चे थे, सिन्सियर थे और छूटने की कामना थी, इसलिए उन्हें ऐसा भाव रहता था कि समकित जैसा कुछ होगा। लेकिन उन्हें तो पूर्ण प्रकाश हो गया! लोगों के भी पुण्य होंगे, विश्व का कल्याण होना होगा, इसलिए ऐसे ग़ज़ब के ज्ञानी प्रकट हुए और ऐसा अद्भुत अक्रम विज्ञान प्रकट हुआ!
जय सच्चिदानंद
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