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[9] कुटुंब-चचेरे भाई-भतीजे
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है यह जगत् तो! अगर वह मिले तो हमें उसके प्रति अभिप्राय नहीं रहेगा। अगर वह मिल जाए तो उसे पता भी नहीं चलेगा कि मुझे उसकी इस बात की खबर है ! क्योंकि उसके लिए क्या अभिप्राय रखना? जब वह खुद ही लटू है तो। शुद्धात्मा और लटू दो ही हैं, इसके अलावा है ही क्या?
उसके पिता जी दर्शन कर गए थे बेचारे और वह तो वहाँ पूरे गाँव में टेढ़ा ही बोलता रहा। (सत्संग कार्यक्रम में) जब हमारे बिगुल बजे न, तो उसे अच्छा नहीं लगा। पहले उसी को सुनाई देता था, क्योंकि वह इंतज़ार करके ही बैठा रहता था न !
प्रश्नकर्ता : जिस प्रकार से नटु भाई ने आवाज़ लगवाई, वह उन्होंने भी सुनी थी, दादा।
दादाश्री : आवाज़ लगाई, वह भी ढूँढ निकाला था। नटु ने लगवाई थी यह। उसी को इन सब की पड़ी रहती है।
प्रश्नकर्ता : शरीर और कान वहीं पर लगे रहते हैं। दादाश्री : ऐसा है यह जगत् तो!
फिर भी मिलने पर उसे ऐसा नहीं लगेगा कि वह हम से अलग है क्योंकि हमें जुदाई है ही नहीं। वह बेचारा लटू है, लटू के लिए क्या अभिप्राय? उसके हाथ में सत्ता नहीं है, संडास जाने की भी सत्ता नहीं है। वह जो कुछ भी कर रहा है, वह सब मेरा ही हिसाब दिखा रहा है। सही है न, उसमें उस बेचारे के पास कोई सत्ता ही नहीं है न ! वह शुद्धात्मा ही है, उसके शुद्धात्मा को हमारे नमस्कार हैं।
नाटकीय रिश्ता रखा सब के साथ अपने जो परिवारजन हैं न, वे अपने कज़िन्स लगते हैं। उनसे अपना क्या बदलेगा? कुछ हो पाएगा? मैं किसी का चचेरा भाई, आप भी किसी के चचेरे भाई, वे सब तो इस शरीर को लेकर कुटुंब वाले हैं, चचेरे भाई-बहन हैं, आत्मा को तो कुछ भी लेना-देना नहीं है न! कर्म