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[10.8] भगवान के बारे में मौलिक समझ
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रिलेटिव में उपकारी चलेगा लेकिन रियल में तो नहीं
घर के लोग, माता-पिता ऊपरी। ये रिलेटिव ऊपरी हैं लेकिन रियल ऊपरी तो कोई भी नहीं चाहिए। भगवान ऊपरी होंगे तो वह नहीं चलेगा। यहाँ पर जो ऊपरी हैं, उनकी भी कितनी झंझट है ! पिता हैं तो भी परेशानी है। जन्म लिया है इसलिए उस परेशानी को तो छोड़ नहीं सकते लेकिन दूसरे तो बिना जन्म दिए, बिना बात के चढ़ बैठते हैं। वर्ल्ड में यदि माँ-बाप ऊपरी हैं तो उसमें कोई हर्ज नहीं है, बाकी मैं और किसी का ऊपरीपन स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था।
ये माँ-बाप उपकारी हैं, इसलिए अगर वे हमें डाँटेंगे तो चला लेंगे। हाँ, डाँटना पड़े तो घर वाले डाँटें, उसमें हर्ज नहीं है क्योंकि वे लोग तो हमारे लिए महेनत करते हैं इसलिए उपकारी हैं। छोटे से बड़ा किया, वह सब जानते हैं न हम। लेकिन यदि कोई ऐसा जिसने हमारा लालन-पालन नहीं किया और वह हमें डाँटे तो वह भला कौन? भगवान ने नहीं पाला पोसा, ऐसा खुले तौर पर दिखाई देता है। वे यदि हमें डाँटें तो उससे क्या लेना-देना? यह तो मैंने खुद देखा है कि माँ-बाप ने बड़ा किया है। यह खुले तौर पर दिखाई देता है इसलिए उनका उपकार नहीं भूल सकते। उन्हें तो हम प्रत्यक्ष उपकारी देखते हैं व जानते हैं। उनका उपकारीपन है, उपकारी का ऊपरीपन है। जबकि भगवान का तो, वह तो हमेशा के लिए ऊपरीपन सूचित करता है। हमेशा के लिए ऊपरी नहीं चाहिए।
ढूँढ निकाला कि मेरा और आपका कोई ऊपरी है ही नहीं __मैं जिंदगी में कभी इस तरह से नहीं जीया कि कोई मेरा ऊपरी है। मुझे ऊपरी पुसाता ही नहीं, नो बडी (कोई नहीं)। मैं इस दुनिया में ऊपरी बनाने के लिए नहीं आया हूँ। ऊपरी पुसाए ही कैसे? हमें तो रात को नींद भी नहीं आएगी। रास ही नहीं आएगा न! इसलिए ऊपरी नहीं चाहिए। ऊपरी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हूँ। तो कहते हैं, कि जब तक ऊपरी को स्वीकार नहीं करेगा तब तक शादी करने को नहीं मिलेगी। मैंने कहा, 'शादी नहीं करूँगा। क्या ऊपरीपना स्वीकार