Book Title: Gnani Purush Part 1
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 496
________________ [10.9] सही गुरु की पहचान थी शुरू से ही 431 कांकरोली वाले साधु की कंठी बंधवाई हुई थी। वह लगभग बारह-तेरह साल की उम्र में अपने आप टूट गई। सब ने कहा, 'फिर से कंठी बंधवाओ'। तब फिर बा ने कहा कि 'दोबारा कंठी बंधाए बिना नहीं चलेगा। मेरी मदर मुझे वैष्णव धर्म में डालने का प्रयत्न कर रही थीं इसलिए मदर ने कहा कि 'कांकरोली से साधु महाराज आए हैं, तो हम दोबारा कंठी बंधवा लें'। उन दिनों दोबारा कंठी बंधवाने के लिए ठंडे पानी का घड़ा भरकर ऊपर डालते थे और कान में फूंक मारते थे। क्या फूंक मारते थे? 'श्री कृष्ण शरणम् मम्'। प्रश्नकर्ता : मंत्र देते थे। दादाश्री : तो हमारी समझ में आता था कि 'श्री कृष्ण, हमारी शरण में आ' हमें ऐसा सुनाई देता था। क्या सुनाई देता था? प्रश्नकर्ता : कृष्ण भगवान, आप हमारी शरण में आओ। दादाश्री : इसलिए मैंने कहा, 'नहीं, मुझे ऐसा नहीं चलेगा। मुझे ऐसी कंठी नहीं पहननी है, बा। मुझे तो अगर कोई कुछ सही सिखाएगा तभी मुझे कंठी बाँधनी है'। बहुत दिनों तक छला गया, अब नहीं पड़ना है कुँवे में मैंने कहा, 'देखो यह कुँवा! मैं अपने बाप-दादा के कुँवे में नहीं गिरना चाहता'। अपने बाप-दादा इस कुँवे में गिरे होंगे। उन दिनों उसमें पानी होगा। पहले पानी था। वल्लभाचार्य के समय में पंद्रह फुट पानी था। तब तक गिर सकते थे क्योंकि तैरना आता इसलिए जीवित रहता था लेकिन अभी तो वह पानी सूख चुका है। मैं वैष्णवों का कुँवा देखकर आया हूँ। मुझे तो इस कुँवे में देखने पर बड़े-बड़े पत्थर और साँप पड़े हुए दिखाई देते हैं, पानी नहीं दिखाई देता। मैं उसमें नहीं गिरूँगा, आप सब अपने बाप-दादा के कुँवे में गिरना। बाप-दादा जिस कुँवे में गिरे उसी कुँवे में हमें भी गिरना

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