Book Title: Gnani Purush Part 1
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 500
________________ [10.9] सही गुरु की पहचान थी शुरू से ही 435 समझ में आएगी'। उनके कहने से पहले तो मैं कुछ नई ही बात कह देता था। वैज्ञानिक दिमाग़! वही एक महाराज थे जो मुझे पहचान गए थे। वे महाराज कुछ कह रहे होते और वही बात मैं कह देता था। उन्होंने कहा, 'ऐसा किसी को नहीं आता'। तब मैंने कहा, 'ये महाराज सही कह रहे हैं। उन्हें समझ में आ गया था कि यह सभी बातें बहुत ही उच्च प्रकार की करता है। मेरा वैज्ञानिक स्वभाव था, शुरू से ही। जितना (शास्त्र) पढ़ा उस पर से मैं विज्ञान बताता था। विज्ञान अर्थात् कि यह मेरे पाताल का पानी है। इसमें से (शास्त्र में से) लिया, लेकिन पानी निकलता था पाताल में से। वैज्ञानिक अर्थात् खुद का ही सबकुछ (सिद्धांत) बनाना। सामने वाला बात करे उससे पहले ही आगे का सबकुछ देख लेना, सामने वाले को रास्ते पर ला देना। मुझे बचपन से ही आदत थी कि जब कोई ज्ञान की बातें करता तब मैं उसे विज्ञान की तरफ ले जाता था। वैज्ञानिक स्वभाव तो मेरा बचपन से ही था। वैज्ञानिक अर्थात् मूल शब्द मिलने के बाद मैं न जाने कहाँ तक पहुँच जाता था! बात ज्ञान की चल रही होती थी, तो मैं उसमें से न जाने कुछ अलग ही खोज कर देता था! लोग विज्ञान की बात सुनते हैं तो उसे ज्ञान में ले जाते हैं और मैं ज्ञान की बात को विज्ञान में ले जाता था। विज्ञान यानी कि ऐसी-ऐसी बातें जो शास्त्रों में नहीं मिलती थीं लेकिन उसकी सभी प्रकार से स्पष्टता हो जाती थी। परिणाम ही दिखाई देते थे, इसलिए कहीं भी चिपका नहीं प्रश्नकर्ता : दादा, आपने कहा है न, कि आपका ब्रेन परिणाम को पकड़ लेता था, उसके बारे में ज़रा ज़्यादा बताइए? दादाश्री : मेरा बिलोना परिणामवादी था। आज बिलोना बिलोया उसमें क्या आया? इस तरह से देखने की आदत थी। बिलोता ज़रूर था

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