Book Title: Gnani Purush Part 1
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 507
________________ 442 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) साथ यों खेलते रहते थे। मैंने उन्हें जो चिट्ठी दी वह चिट्ठी उन्होंने हाथ में पकड़ी। पढ़ा-करा नहीं। मुझे तो जल्दी से वापस लौटने को कहा गया था, 'चिट्ठी देने पर वे क्या कहते हैं, बताना'। मैं तो उन्हें कहने गया। बच्चा था इसलिए खेलने में ही चित्त रहता था। सेठ ने तो वहाँ पर बैठाए रखा, मैं कब तक बैठा रहता? और वे उस कुत्ते के साथ खेल रहे थे लेकिन मेरी बात ठीक से सुनी नहीं और 'हाँ, हो रहा है' कहा, जवाब ही नहीं दिया। तब मुझे गुस्सा आ गया। मुझे तो खेलने जाने की जल्दी थी। मैंने कहा, 'मेरी बात सुनिए, इतने बड़े होकर कुत्ते के साथ क्या खेल रहे हैं?' इस कुत्ते के शौक में पड़ा इंसान, इंसानों का शौक नहीं है और कुत्ते का शौक है, इसका कब अंत आएगा? मुझे तो अंदर एकदम जल्दी हो रही थी और वे न तो कुछ कह रहे थे, न ही कर रहे थे! मैंने सोचा, 'इनका चित्त इस कुत्ते में है। इनके चित्त का ठिकाना नहीं है। मुझे काम है और ये कर नहीं रहे हैं और कुत्ते से दोस्ती कर रहे हैं'। क्षत्रिय पुत्र और दिमाग़ तूफानी, तो मैं सेठ की भी नहीं सुनता था मुझे लगा कि यह किस तरह का इंसान है! मैंने कहा, 'जवाब तो दे दीजिए, मुझे जाना है'। तब फिर मैंने कहा, 'सेठ जी क्या कहते हैं ?' तब उन्होंने कहा, 'मैं तुझे बताता हूँ, बैठ न'। फिर मेरी चिट्ठी की तो बात न जाने कहाँ गई और कुत्ते के साथ खेलने लगे। मेरा दिमाग़ घूम गया। या तो 'ना' कह दो या 'हाँ'। 'ना' कहेंगे तो उठकर चलता बनूँ। लेकिन न तो वे 'ना' कह रहे थे, न ही 'हाँ' कह रहे थे। उन दिनों ज्ञान नहीं था इसलिए मन में तो ऐसा ही होता न, कि पत्थर मारूँ। होता या नहीं होता? मैं तो जल्दबाजी में था और दिमाग़ तूफानी। मैंने कहा, 'ये मुझे कब तक बैठाए रखेंगे?' इसलिए मैंने कहा, 'सेठ, यह चिट्ठी पढ़कर...' तो कहने लगे, 'बैठ न, अभी हो जाएगा। जल्दी क्या है ?' मेरे कहने पर वे इमोशनल नहीं हुए। तब मैं समझ गया कि यह बनिया

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