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४. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र
भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए। ५. हे दादा भगवान! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी
कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाए, न बुलवाई जाए या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे, मृदु-ऋजु भाषा बोलने की
शक्ति दीजिए। ६. हे दादा भगवान! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति स्त्री, पुरुष
या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचित्मात्र भी विषय-विकार संबंधी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किए जाएँ, न करवाए जाएँ या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए। मुझे, निरंतर निर्विकार रहने की परम शक्ति दीजिए। ७. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी रस में लुब्धता न हो ऐसी शक्ति दीजिए।
समरसी आहार लेने की परम शक्ति दीजिए। ८. हे दादा भगवान! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष अथवा __ परोक्ष, जीवित अथवा मृत, किसी का किंचित्मात्र भी अवर्णवाद, अपराध,
अविनय न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की
जाएँ, ऐसी परम शक्ति दीजिए। ९. हे दादा भगवान ! मुझे, जगत कल्याण करने का निमित्त बनने की परम
शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए। (इतना आप दादा भगवान से माँगते रहें। यह प्रतिदिन यंत्रवत् पढ़ने की चीज़ नहीं है, हृदय में रखने की चीज़ है। यह प्रतिदिन उपयोगपूर्वक भावना करने की चीज़ है। इतने पाठ में तमाम शास्त्रों का सार आ जाता है।)