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[10.10] ज्ञानी के लक्षण, बचपन से ही
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कुत्ते को हम छेड़ें तो कुत्ता भी लकड़ी को काटने जाता है। कुत्ते को यह पता नहीं चलता कि इसमें गुनहगार कौन है ! जो रोज़ खाना खिलाता है उसे काट लिया। वह नहीं जानता था कि पूँछ किसने दबाई। कुत्ता निमित्त को काटे, वह समझ में आता है लेकिन यदि इंसान निमित्त को काटे तो कुत्ते में और उसमें क्या फर्क रहा। आपको क्या लगता है ?
प्रश्नकर्ता : कुछ भी फर्क नहीं है, दोनों में।
दादाश्री : हाँ। इस उदाहरण से कोई मदद मिलेगी? मैं जो बात कर रहा हूँ, उससे?
यह बहुत गहन साइन्स है! मैं जो कह रहा हूँ वह बहुत सूक्ष्म साइन्स है। पूरा जगत् निमित्त को ही काटता है।
जो निमित्त को न काटे, वह भगवान बनता है
यह संसार निमित्त ही है, लेकिन लोगों को निमित्त को काटने की आदत पड़ गई है। तभी से पता चल गया कि कुत्ता वफादार नहीं है। यदि वफादार होता तो क्या वह काटता? जिसने दबाया उसे काटता, सेठ को नहीं काटता। सिर्फ बाघ की दृष्टि ही ऐसी होती है कि वह मारने वाले की तरफ ही जाता है। जहाँ से गोली आई, निशाना वहीं पर जाता है।
प्रश्नकर्ता : ऐसा?
दादाश्री : हाँ, हमारे साथ ऐसा हुआ था न! बाघ को पकड़कर एक कम्पाउन्ड में लाया गया था। कम्पाउन्ड में नीचे चारों तरफ बाड़ रखी थी। फिर कम्पाउन्ड में उसे खुला छोड़ दिया, शौक के लिए, चौथी मंज़िल के झरोखे से उसे गोली मारी। गोली आई लेकिन उसे छूकर निकल गई, बाघ को नहीं लगी। उसने देखा कि यह कहाँ से आई? तो उसने पहली मंज़िल पर छलाँग लगाई, दूसरी पर छलाँग लगाई, तीसरी पर छलाँग लगाई लेकिन आखिर तक नहीं पहुंच पाया। वह कितना जाँबाज़ कहा जाएगा, इस तरह खड़ी (वर्टिकल) छलाँग लगाना! पहले एक छलाँग लगाई पहली मंजिल पर, खड़ी छलाँग लगानी थी न, लेकिन