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[10.9] सही गुरु की पहचान थी शुरू से ही
437 मैं शॉर्ट कट ढूँढ निकालता था। लोग तो, अगर आगे चार भेड़ चल रही हो तो उसके पीछे पूरी टोली चलने लगती है! रास्ता कितना टेढ़ा है, वैसा देखते करते नहीं हैं। यह तो सरकार ने नियम बनाए हैं, इसलिए सीधे रास्ते बनवाए हैं। पढ़े-लिखे लोगों ने सीधे रास्ते बनवाए हैं, वर्ना पहले तो एक मील जाने के लिए तीन मील उल्टे रास्ते पर जाना पड़ता था, सभी रास्ते ऐसे थे।
जो किसी की नकल नहीं करे, उसे कहते हैं अक्ल
अक्ल तो किसे कहते हैं कि जिसने कभी भी नकल नहीं की हो। नकल कर-करके अक्ल वाले बने हैं, उससे क्या भला होगा? जो किसी की भी नकल नहीं करें, उसे कहते हैं अक्ल। यह सारा तो नकल करकरके सीखे हैं!
प्रश्नकर्ता : यदि किसी की भी नकल नहीं की हो, तो वे तो ज्ञानी ही कहलाएँगे न?
दादाश्री : नहीं, वह स्थिति कुछ अच्छी कहलाएगी। मैंने कभी भी नकल नहीं की थी, बचपन से ही नहीं की। आप अगर कुछ कर रहे हों और उसमें अगर मुझे कुछ उल्टा दिखाई देता था तो मैं वह नहीं करता था, मैं अपना कुछ अलग करता था।
प्रश्नकर्ता : जब ऐसी स्वतंत्रता होगी तभी ऐसी स्थिति आएगी
न?
दादाश्री : हाँ। वह चाहे कुछ भी हो, अंदर ऐसा कुछ अलग करते थे, भेदांकन किए बिना नहीं रहते थे। अंदर ऐसा टेढ़ा गुण था कि यहाँ से यह रास्ता इस तरह ले जाएगा और इधर घूम जाएगा। अब मेरी आदत ऐसी थी, इसलिए लोगों के खेतों में से होकर मैं सीधा जाता था लेकिन घूमकर जाने की आदत नहीं थी।
अंदर वाले भगवान को डाँटता था कि 'रास्ता बता' अपने सिद्धांत द्वारा बैक (वापस) जाओ। मेरा रास्ता यही था कि