Book Title: Gnani Purush Part 1
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 498
________________ [10.9] सही गुरु की पहचान थी शुरू से ही 433 बड़ा होने पर मैं नुगुरा शब्द को समझ गया कि नुगुरा शब्द से वे क्या कहना चाहते हैं ! 'न गुरु' ऐसा पता नहीं था कि 'बिना गुरु का'। बचपन में गुरु के बारे में यथार्थ समझ उस घड़ी गुरु का अर्थ, मैं ऐसा समझता था कि प्रकाश दिखाने वाला। 'जो लोग मुझे प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं दें, जो मेरे लिए प्रकाश न धरें तो मुझे यों ही कोई ठंडा पानी छिड़ककर या ऊपर पानी का घड़ा उँडेलकर कोई कंठी नहीं बंधवानी। जिसके खुद के पास प्रकाश नहीं है, जिसके पास दूसरों के लिए प्रकाश धरने की शक्ति नहीं है, उससे मैं कंठी क्यों पहनूँ? कोई उपदेश नहीं देते और गुरु बन बैठे हैं! ऐसा गुरु मुझे नहीं चाहिए। जैसे गुरु आपने बनाए हैं, वैसे गुरु मुझे नहीं बनाने हैं। जाओ, तुम्हारा मोक्ष मुझे नहीं चाहिए। वह हमें नहीं पुसाएगा, उसके बजाय यों ही चलने दो।' 'मुझे जब ऐसा लगेगा कि इन्हें गुरु बनाने जैसा है तब मैं ठंडा पानी तो क्या, अगर वे हाथ काट लेंगे तो हाथ भी कटवा दूंगा। अनंत जन्मों से हाथ थे ही न, कहाँ नहीं थे? और कोई लुटेरा खड़ग से हाथ काट दे तो कट ही जाने देते हैं न? तो यहाँ पर यदि गुरु हाथ काट दें, तब क्या नहीं कटने देंगे? लेकिन गुरु बेचारे काटते ही नहीं हैं न! लेकिन अगर कभी वे काटने का कहें तब फिर क्या ऐसा नहीं करने का कोई कारण है? मेरे लिए तो, जो मुझे उपदेश दें, किसी भी प्रकार से जागृत करें, हेल्प करें, प्रकाश दें, वही मेरे गुरु। मुझे उनसे और कुछ नहीं चाहिए था, सिर्फ मुझे प्रकाश दिखाएँ। मुझे रास्ता दिखाएँ, जो मुझे नहीं दिखाई देता, उसे जो दिखा दें, वही मेरे गुरु। मेरे मन में ज़रा अंदर शांति लाएँ, वही मेरे गुरु। मुझे वास्तविक ब्रह्मसंबंध चाहिए, भ्रांति वाला नहीं ___मैं तो गुरु से कहता था कि, 'आप ऐसा जो ब्रह्मसंबंध करवाते हैं, वह मुझे पसंद नहीं है'। ब्रह्मसंबंध तो आत्मा की लगनी लगने के

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