Book Title: Gnani Purush Part 1
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 497
________________ ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 ) है? क्या हमें लिखकर दिया गया है ? अंदर पानी देखो, है या नहीं ? तो गिरो, वर्ना यदि पानी नहीं है तो गिरकर अपना सिर फोड़ने का क्या मतलब है?' 432 प्रश्नकर्ता: और उस समय आपने मना कर दिया । दादाश्री : हाँ, मैंने बा को मना कर दिया । यह क्या तरीका है ? बहुत दिनों तक छले गए। अब इस जन्म में नहीं छला जाऊँगा। ये कंठीबंधा ( ऐसा व्यक्ति जिसने किसी प्रकार की बाँधी हो) नहीं हैं, मैं तो ऐसा हूँ कि तुझे भी बाँध दूँ। ममता या स्वार्थ नहीं, इसीलिए नहीं सुना मैं तो पहले से ही क्रांतिकारी था ! मैं ऐसा इंसान नहीं हूँ कि किसी की कुछ सुनूँ ! जिसे ममता हो वह सुनता है । जिसे ममता नहीं है उसे किसी की क्या सुननी ? स्वार्थ वाले सुनते हैं, यदि उन्हें फायदा हो रहा हो, तो! मुझे बिल्कुल भी ममता नहीं थी, स्वार्थ भी नहीं था । प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, वह कौन सा एटमॉस्फियर था कि उस ज़माने में आप बारह साल की उम्र में इतनी हिम्मत से मना कर सके ? दादाश्री : बहुत ही हिम्मत थी । इसीलिए मदर ने कहा कि तुझे 'नुगुरो' (बिना गुरु का) कहेंगे। तब मैंने कहा कि 'वह भला कौन सा जानवर आया वापस, नुगुरो ? मुझे यह नुगुरा समझ में नहीं आया था और बा भी नहीं समझते होंगे, लेकिन लोगों ने उन्हें कहा होगा कि ' नुगुरा कहेंगे'। प्रश्नकर्ता : हाँ, न-गुरु । दादाश्री : तब 'नुगुरा' शब्द था, इसीलिए मैं ऐसा समझा कि यह शब्द उन लोगों का कोई एडजस्टमेन्ट होगा, और 'नुगुरा' कहकर फज़ीता करते होंगे। नुगुरा कोई शब्द होगा गाली देने के लिए। इसलिए मैंने कहा कि, “बहुत हुआ तो वे लोग मुझे 'नुगुरा' कहेंगे, मेरा फज़ीता करेंगे ? भले ही मुझे नुगुरा कहें, जो कहना हो, वह कहें।"

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