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[10.8] भगवान के बारे में मौलिक समझ
अच्छा खाना तो बनाकर देगी। वह खाएँगे - पीएँगे और चाय पीकर मस्ती से सो जाएँगे। तैयार करके तो देगी न ! फिर वह रिलेटिव है, रियल नहीं है न! रिलेटिव का तो निकाल (निपटारा ) हो जाएगा। पत्नी के साथ वाला मोक्ष अच्छा। स्त्री का ऊपरीपना अच्छा। जबकि यह तो बिना बात के ऊपरी बन बैठा है, न लेना न देना! किसी काम नहीं आएगा, ऐसा ऊपरी मेरे किस काम का जो किसी काम न आए ?
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तेरी मुक्ति के बजाय मेरे घर की मुक्ति अच्छी है और अपनी वाइफ वगैरह कब तक ऊपरी हैं ? जब तक यहाँ जी रहे हैं तब तक । तो हमेशा के लिए चढ़ बैठता है । ऊपरी नहीं होना चाहिए, इतनी यह झंझट हुई थी। इस जिंदगी का चाहे जो हो, लेकिन ऊपरी तो होना ही नहीं चाहिए। वह नहीं पुसाएगा, अपने ऊपर भगवान नहीं चाहिए । अतः तभी से मैं ऐसा नहीं मानता था कि भगवान ऊपरी हैं । भगवान ऊपरी क्यों होंगे? उसके बजाय तो हमारा इन लोगों के अन्डर में रहना अच्छा है लेकिन भगवान के अन्डर में तो रह ही नहीं सकते। क्योंकि भगवान ऊपरी और मोक्ष, हिन्दुस्तान के लोग चाहे इन दोनों चीज़ों की कल्पना करते हैं, लेकिन ये विरोधाभासी हैं। अब इस दुनिया में तो ऐसा लक्ष (जागृति) में ही नहीं है न, कि ये विरोधाभासी हैं।
मोक्ष अर्थात् नो अन्डरहैन्ड, नो बॉस
मोक्ष और भगवान दोनों विरोधाभासी हैं । यदि मोक्ष है तो भगवान ऊपरी नहीं होना चाहिए और अगर ऊपरी है तो किसी का मोक्ष नहीं होगा। मैं ऐसा मोक्ष नहीं ढूँढ रहा हूँ । मोक्ष अर्थात् मुक्तभाव।
मोक्ष का मतलब क्या है ? नो अन्डरहैन्ड, नो बॉस । अन्डरहैन्ड का शौक हो तो यहाँ पर होना चाहिए, बाकी वहाँ पर तो अन्डरहैन्ड का शौक नहीं रख सकते। मोक्ष में तो कोई अन्डरहैन्ड नहीं है, अन्डरहैन्ड भी नहीं है, कोई ऊपरी है ही नहीं । बिल्कुल इन्डिपेन्डेन्ट। दखल नहीं है किसी तरह की, हम अपने मोक्ष में ही । अन्डरहैन्ड का शौक है तो ऊपरी मिलेंगे और जिसे अन्डरहैन्ड का शौक नहीं है उन्हें मुक्ति मिलती है। किसे मिलती है।