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[10.8] भगवान के बारे में मौलिक समझ
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वीतराग बन जाओगे तो मैं और आप एक ही हैं। राग-द्वेष छूट जाएँगे तो मैं और आप एक ही हैं!' ।
अंदर वाले भगवान से ही कहता था, 'मुझे तारना'
'ऊपर कोई बाप भी नहीं है, ऐसा कोई बाँस भी नहीं है', ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास हो गया था। हर एक मनुष्य के अंदर भगवान रहे हुए हैं, सिर्फ प्रकट करने हैं। वे प्रकट किस तरह से होंगे? जहाँ पर प्रकट हो चुके हैं, उनके पास जाएँगे तो प्रकट हो जाएँगे। और कोई रास्ता नहीं है।
अतः यही मार्ग अपनाया था कि, भाई अब हमें इस तरह से काम लेना है कि ऊपर भगवान नहीं हैं। भगवान अंदर हैं और पहले से ही अंदर वाले भगवान से बात करना शुरू कर दिया था कि 'आप मुझे तारना या बचाना'। जो कुछ भी कहता था वह उन्हीं से कहता था। ऊपर वाले को कहने जाएँ तो कोई बाप भी नहीं पूछता है, वहाँ तो। यों ही चला जाता है, बीच में ही। जिसे अन्डरहैन्ड पसंद नहीं है, उसे ऊपरी नहीं मिलेगा
यह मेरी खुद की खोज है कि भगवान ऊपरी नहीं हैं । वे अन्डरहैन्ड भी नहीं हैं और ऊपरी भी नहीं'। तब उन्होंने मुझे उनकी खुद की दशा वाला बनाया कि ऊपरी भी नहीं और अन्डरहैन्ड भी नहीं। यानी कि मुझे अन्डरहैन्ड का भी शौक नहीं था और ऊपरी की भी मुझे ज़रूरत नहीं थी। जिसे अन्डरहैन्ड का शौक होता है, उसे ऊपरी मिले बगैर नहीं रहते और वह दोनों के बीच बफर बन जाता है, ऊपरी और अन्डरहैन्ड के बीच । बफर कुटता ही रहता है। लोग कहते हैं कि 'हमें ऊपरी पसंद नहीं हैं। मैंने कहा, 'नहीं, ऐसा नहीं चलेगा। जब आपको अन्डरहैन्ड अच्छे नहीं लगेंगे, तब अपने आप ही ऊपरी भी नहीं मिलेंगे'। वह उसका परिणाम है। जब आपको अन्डरहैन्ड पसंद नहीं होंगे, तब आपको ऊपरी भी प्राप्त नहीं होंगे। आपको ऐसी इच्छा नहीं करनी है कि मुझे ऊपरी न मिले। मुझे अन्डरहैन्ड पसंद नहीं हैं मैं किसी को अन्डरहैन्ड नहीं रखना चाहता तो फिर मुझे ऊपरी कैसे मिलेंगे?