________________
[10.8] भगवान के बारे में मौलिक समझ
421
था मेरा। मैंने कहा, 'बाप जी, तब तो ये अस्पताल बंद करवा दें'। अरे. संडास जाने की तो शक्ति नहीं है। शर्म नहीं आती? इतने बड़े बाप जी (साधु महाराज) थे तब भी कहा, 'संडास जाने की शक्ति हो तो मुझे बता, चल, आ जा। प्रमाण दे'। दुःख लेने आए हो! लोगों को भ्रमित कर रहा है?
___ 'बाप जी, इसके बजाय घर पर जाकर शादी कर लो न! यह तूफान मचाने के बजाय'। उस दिन उन्हें साफ-साफ सुना दिया था, तो उन्हें बुरा लगा। विद्रोही स्वभाव था मेरा इसलिए ज़रा बोलूँ तो खराब तो लगता न?
ये सब तो, अगर कोई गाँव वाला बैठा हो न, तो उसके भी भगवा कपड़े देखकर, 'बाप जी, मेरा कोई भला करना'। ये बेचारे भोले लोग भ्रमित हो जाते हैं ! कहते हैं, 'मेरा दुःख ले लिया' मुझे यह नहीं पुसाएगा। मैं साफ-साफ बोलने वाला इंसान हूँ! मुझ में इतना अवगुण था। जो निःस्पृही, विद्रोही, इंसान हो, जिसे कोई लेना-देना नहीं है वह इस तरह से चलता है। अगर उसे ठीक लगे तो वह कह देता है।
अंत में ढूँढ निकाला वास्तविक भगवान को
तेरह साल की उम्र में स्वतंत्रता जागी थी। तभी से मैंने जाँच की कि भगवान को ढूँढ निकालना है। ऐसा कौन भगवान है जो हमें मोक्ष में ले जाएगा! लेकिन फिर उन्हें ढूँढ निकाला। 'ऊपर कोई भगवान नहीं है' ऐसा ढूँढ निकाला।
यहाँ से वहाँ, ऐसे हिलाया, वैसा किया लेकिन ढूँढ निकाला कि 'है ही नहीं'। 'नहीं है' ऐसा कहा, उसके बाद मैंने इंतज़ार किया। मैंने कहा, 'यदि तू है तो मुझे अभी उठा ले'। 'आकाश देखा लेकिन कुछ भी नहीं। कुछ भी पता ही नहीं है उसका'। यों ही वहाँ पर लॉस्ट प्रोपर्टी (खोईपाई चीज़ों के) ऑफिस में चली गईं लोगों की सारी अर्जियाँ। फिर कहीं ऐसा पढ़ा कि भगवान तो अंदर वाले को कहते हैं, तब वह बात मुझे अच्छी लगी। कई लोग तो भगवान को 'अंदर वाला' ही कहते हैं न!