Book Title: Gnani Purush Part 1
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 481
________________ 416 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : 'नहीं-नहीं। मैं नहीं रहूँगा अन्डरहैन्ड। आपकी दृष्टि में अगर मैं अन्डरहैन्ड लगूंगा तो मैं उठ जाऊँगा। आपकी दृष्टि बदलेगी, तो मैं उठकर चला जाऊँगा। सेवा सब प्रकार की करूँगा'। तब महाराज समझ गए कि यह लड़का पक्का है ! बैठाने के बाद उठा दें तो वह मोक्ष किस काम का? 'भगवान हमें मोक्ष में ले जाएँगे,' तो तुरंत ही विचार आता है, उनके बोलते ही मुझे फिल्म की तरह सब दिखाई देता था। वे ले जाएँगे तो वहाँ पर मुझे कहाँ पर बैठाएँगे? मान लो मुझे मोक्ष में ले गए, तब भी किसी एक जगह पर बैठाएँगे कि 'यहाँ बैठ'। जो ऊपरी होगा वह तो कहेगा न, 'यहाँ बैठ इस सोफासेट पर'। वह अच्छी जगह हो, फर्स्ट क्लास जगह हो और वहाँ पर बैठे हुए हों, तब अगर उनका कोई खास नया परिचित आ जाए, अन्य कोई रिश्तेदार, साले का बेटा आ जाए तो हम से कहेंगे 'उठ यहाँ से' और साले के बेटे को बैठा देंगे। अरे ! छोड़ तेरा मोक्ष, जो हमें उठा दे वह मोक्ष किस काम का? जहाँ पर कोई ऐसा कहने वाला है कि 'उठ,' वहाँ जाने की क्या ज़रूरत? बैठने के बाद में उठाने का समय आए, तब तो तेरा ऐसा मोक्ष मुझे नहीं चाहिए। तू अपने घर पर ही रख। तू अकेला वहाँ पर सो जा। वहाँ पर कोई, 'उठ,' कहने वाला नहीं होना चाहिए। मोक्ष का मतलब जहाँ से कोई उठाए नहीं, कोई ऊपरी नहीं। उसके लिए जन्म नहीं लिया है। उसके बजाय तो मेरे फादर-मदर जो कि प्रत्यक्ष उपकारी हैं, वही मेरे लिए सही हैं। तू कहाँ प्रत्यक्ष उपकारी है ? उसके बजाय तो यह संसार अच्छा। मोक्ष में ले जाने वाला कौन होता है ? जब तक मोक्ष का मार्ग है तब तक गुरु की ज़रूरत है, ज्ञानियों की ज़रूरत है। लेकिन मोक्ष में ले जाने के लिए भगवान जैसी कोई चीज़ नहीं है। भगवान (ऊपरी) हों तो इस दुनिया में जीने का अर्थ ही क्या है? मेरे माता-पिता ही मेरे भगवान हैं क्योंकि मैं देख सकता हूँ कि उन्होंने मुझे जीवन दिया है। आप ऐसा भगवान दीजिए। ऐसा भगवान नहीं चाहिए जो मुझे इधर-उधर भटकाए।

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