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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
'भगवान मोक्ष ले जाएँगे' सुनकर हुआ मनोमंथन
फिर एक दिन उन्होंने मुझसे कहा, 'बच्चा, भगवान तुमको मोक्ष में ले जाएगा। तू मेरे पैर दबाता है, सेवा करता है, भगवान तुझे मोक्ष में ले जाएँगे'। महाराज का यह वाक्य मुझे ठीक नहीं लगा। तब वह मुझे बहुत खटका, मेरे दिमाग में। तुरंत अंदर दिमाग़ फटने लगा कि भगवान मुझे मोक्ष में ले जाएँगे? ऐसा फिर कौन है वह भला?' मैंने कहा, 'साहब, आपकी सेवा करने के फलस्वरूप मुझे भगवान मोक्ष ले जाएँगे, तो यह बात न करें तो मुझे अच्छा लगेगा। यह बात मुझे रास नहीं आई। मुझे पसंद नहीं है। बाप जी, अब फिर से ऐसा मत कहना, नहीं तो फिर नहीं आऊँगा'।
'मुझे आपकी सेवा करने दो, आप मेरे भगवान हो। मुझे मोक्ष में ले जाने वाले भगवान नहीं चाहिए। मुझे बीच में ऐसे भगवान की ज़रूरत नहीं है, मुझे आपकी ही ज़रूरत है। यदि भगवान मुझे मोक्ष में ले जाएँगे तो मुझे इस तरह के मोक्ष में नहीं जाना है। ऐसा मोक्ष मुझे नहीं चाहिए। वह मुझे नहीं पुसाएगा। आपको ले जाना हो तो मैं तैयार हूँ', ऐसा कहा तो उन्हें आश्चर्य हुआ।
उनके मन में ऐसा था कि 'यह बच्चा है, इसलिए समझता नहीं है!' उन्होंने मुझसे कहा, 'तुझे धीरे-धीरे समझ में आ जाएगा'। जब गुजराती में ऐसा कहा, तब मैंने कहा, 'अच्छा। ठीक है साहब,' लेकिन मुझे तो बड़े-बड़े विचार आए कि, 'यदि भगवान मोक्ष में ले जाएँगे तो उनका उपकार नहीं भूल पाएँगे!' आपने ज़रा इतनी सी ही चाय पिलाई हो तो उपकार नहीं भूलते, तो जो मोक्ष में ले जाएँगे तो उनका उपकार तो भूल ही नहीं पाएँगे उनका कितना उपकार मानना पड़ेगा।
जहाँ भगवान ऊपरी हों, ऐसा मोक्ष नहीं चाहिए
भगवान मुझे मोक्ष में ले जाएँगे तो मैं उनका उपकार कब चुकाऊँगा? तब भगवान तो मेरे ऊपरी ही रहे न! तब तो उनके ओब्लाइजिंग (उपकार) के तले ही रहे। भगवान हमें ले जाएँगे तो जो ले जाएगा उसका हमें उपकार तो मानना पड़ेगा न? मैंने कहा, 'मुझे ऐसा