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[10.8] भगवान के बारे में मौलिक समझ सच्चे दिल वाला था इसलिए भगवान को भी डाँटता था
संसार तो बंधन ही है, मुझे तो कम उम्र से ही यह बंधन लगने लगा था। मुझे तो तेरह साल की उम्र में भी यह बंधन लगता था। दुःख नहीं था फिर भी बंधन लगता रहता था।
प्रश्नकर्ता : किस परिबल के आधार पर यह आपको बंधन लगता था?
दादाश्री : अगर आपको मेरी लाइफ जाननी है तो कुछ बात करूँ कि जब मैं छोटा था तभी से मुझे इस दुनिया की परतंत्रता अच्छी नहीं लगती थी, किसी भी व्यक्ति की। मुझे ऊपरी पसंद ही नहीं था। वह बहुत बड़ा दुःख था! मैं किसी भी ऊपरी को चुनने के लिए तैयार नहीं था। मनुष्यों के ऊपर कोई ऊपरी होना ही नहीं चाहिए। यदि अपने ऊपर ऊपरी (बॉस) हो तो कितनी परवशता रहती है।
जब से तेरह साल का था तभी से मेरा भगवान के साथ झगड़ा था। मैं बचपन से ही भगवान को डाँटता था क्योंकि भगवान की तरफ मैं सच्चे दिल वाला था और कुछ भी नहीं, कपट-वपट नहीं।
साधु संतों की सेवा करना बहुत अच्छा लगता था
प्रश्नकर्ता : आपने तेरहवें साल में किस तरह से ढूँढा कि मेरा कोई ऊपरी नहीं है?
दादाश्री : हाँ, मैं जब तेरह साल का था तब हमारे गाँव में, भादरण