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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
यमराज रह गए। भय भी चलता रहा और यह भी चलता रहा। गलत ज्ञान कब तक हेल्प करेगा? हेल्प नहीं करेगा। इस तरह से गलत दिखाने का अर्थ ही नहीं है, उसकी बजाय जैसा है वैसा बता दो न! और सिखाओ कि ऐसी जवाबदेही किस चीज़ से आती है!
प्रश्नकर्ता : लेकिन उसके पीछे आशय तो शुभ है न? गलत काम से डरें, ऐसा आशय है यानी कि शुभ आशय है न? ।
दादाश्री : शुभ आशय ऐसा नहीं होता। शुभ आशय ऐसा होता है कि जो पाँच-दस प्रतिशत ही नुकसान करे, जबकि यहाँ पिच्यानवे प्रतिशत नुकसान कर रहा है ! इसे तो पकड़कर बुलाना चाहिए। किसने खड़ा किया यह तूफान?
प्रश्नकर्ता : उसका उद्भव स्थान मिलना मुश्किल है।
दादाश्री : अरे ऐसा तूफान खड़ा करने वाला नहीं मिलेगा लेकिन यमराज तो है न? क्या यमराज भाग गया है?
पूरी दुनिया के भूत निकालने आया हूँ यह समझ में आ रहा है न? बिना बात के इतने सारे भूत डाल दिए हैं ! यह गलत डाल दिया है आपने।
प्रश्नकर्ता : गलत ही है।
दादाश्री : इसलिए फिर मैंने यमराज को डिसमिस करवाया। मैंने इस गलत त्रास से सब को निकाल दिया, इस विज्ञान द्वारा । मैं पूरी दुनिया के भूत निकालने आया हूँ। मैंने वे निकालने शुरू कर दिए हैं।
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : इससे, वे जो पुराने गद्दी वाले हैं न, उन्हें बहुत विरोध रहता है कि, 'ये दादा हमारी गद्दी खत्म कर रहे हैं, सारी आमदनी'। क्योंकि लोगों के विचार बदल जाएँगे न, लोग स्वतंत्र हो जाएँगे न! जब तक लोग उलझे रहेंगे न, तब तक इन लोगों को पैसे मिलते रहेंगे। यदि उलझन नहीं रहेगी तो फिर कौन जाएगा वहाँ ?