________________
ज्ञानी पुरुष ( भाग - 1 )
बा ने कहा, 'ऐसा क्यों कर रहा है ? ( दोनों को) समान मात्रा में ही दूध पीना चाहिए'। तब मैंने कहा, 'बा, ऐसा क्यों? मैं आपका बेटा हूँ और यह बहू। बहू तो कल दूसरी भी ला सकते हैं लेकिन दूसरा बेटा कहाँ से आएगा? ऐसा क्यों करती हो? बहू तो अगर मर जाएगी तो दूसरी ले आएँगे'। मेरी ऐसी मान्यता थी, हमारे क्षत्रिय लोगों की । 'क्या मुझे वापस ला सकते हो ?' ऐसा कहता था । ये तो बहू बनकर आई हैं और आप दोनों को समान मात्रा में देते हो लेकिन मुझे थोड़ा ज़्यादा मिलना चाहिए।
उसकी माँ यहाँ पर नहीं है, इसलिए उसे खुश रखना पड़ेगा
बा से मैं क्या कहता था ? 'बा, आप मुझे और भाभी को एक समान मानते हो? भाभी को आधा सेर दूध, तो मुझे भी आधा सेर दूध देते हो? उन्हें कम दो' । मुझे अपना आधा सेर रहने देना था, मुझे ज़्यादा नहीं चाहिए था लेकिन भाभी का कम करो, डेढ़ पाव या एक पाव करो ।
370
तब मुझसे कहा, 'मैं, तेरी माँ तो यहीं पर हूँ जबकि उसकी माँ तो यहाँ पर नहीं है इसलिए उसे माँ के बिना सूना लगता है । माँ के बिना वह यहाँ रह रही है न, इसलिए उसे खुश रखना पड़ेगा । पराए घर की लड़की अपने यहाँ आई है तो उसे और ज़्यादा संभालना पड़ेगा। वर्ना उसे बुरा लगेगा बेचारी को, उसे दुःख होगा इसलिए एक समान ही देना पड़ेगा'।
अपने घर पर ही मैंने सास को देखा है । सास का व्यवहार कैसा होता है वह मैंने अपने घर में ही देखा । मैंने देखा कि सास ऐसी होनी चाहिए, जो बेटे से ज़्यादा बहू को माने!
रूठा हुआ इंसान ढूँढता है रिस्पॉन्स
यह बात समझने जैसी है लेकिन देखो न, बचपन में समझ नहीं पाया। बा मुझे समझाते रहते थे, पैबंद लगाते रहते थे फिर भी मुझे समझ में नहीं आता था। तब मैंने आड़ाई की, रूठा, मैंने दूध नहीं पीया। मैंने कहा, 'नहीं पीना है मुझे' ।