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[10.6] विविध प्रकार के भय के सामने...
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साथ जलाईं। हवा की वजह से वह दियासलाई जलाता जा रहा था, और उसी की लपटें दिख रहीं थीं।
__उस दियासलाई की लपट इतनी छोटी सी होगी लेकिन मुझे तो इतना (बड़ा) दिखाई दिया। क्योंकि जैसा देखते हैं (कल्पना करते हैं) वैसा ही दिखाई देता है। बात क्या थी कि लोगों से ऐसा ज्ञान मिला था कि उस महुआ के पेड़ में भूत है, तो वहीं से वहम हो गया था। वास्तव में और कुछ नहीं था।
मैंने दो-तीन जगह पर ऐसे भत देखे हैं लेकिन सब ऐसा ही था। सिर्फ कल्पना, वास्तव में कुछ भी नहीं था। दो-तीन बार ऐसे उदाहरण देखे, लोगों ने कहा कि इस जगह पर भूत रहते हैं, तो कल्पना से वे भूत देखे, भूत होते हैं। ऐसा नहीं है कि नहीं हैं लेकिन मुझे नहीं मिले।
बबूल का दूँठ लगा भूत जैसा एक बार पालेज-बारेजा के सामने हमारा नाले का एक छोटा सा काम चल रहा था, तो एक बार रात को मैं अँधेरे में जा रहा था। कॉन्ट्रैक्ट का बिज़नेस था इसलिए देर हो जाती थी, फिर अँधेरे में जाना पड़ता था। वहाँ अँधेरा हो गया था इसलिए भूत दिखाई दिया, चलता-फिरता दिखाई दिया।
अब कुछ था नहीं। बबूल का ढूँठ खड़ा था और उस पर पत्ते-वत्ते कुछ भी नहीं थे, इसलिए इंसान जैसा दिखाई दिया इससे मुझे ऐसा लगा कि, 'लोग जो कहते हैं वह बात सही है कि इस जगह पर रहता है'। तब वहाँ पर भी ऐसा किया था। मैंने कहा, 'चलो अब, उसे छूकर ही जाना है हमें'।
यह जो सामना करने की आदत थी न पहले से, इसलिए मैं तो उस भूत की तरफ ही चला रौब से... मूल रूप से तो क्षत्रिय थे न! वहाँ जाकर जब मैंने उसे छूआ तब ढूँठ निकला! बबूल का दूंठ देखा।
क्षत्रिय स्वभाव इसीलिए मूल रूप से निडरता का गुण
पच्चीस-तीस साल की उम्र में भूत की खोज करने निकला। हमारा काम कॉन्ट्रैक्ट का था इसलिए रात को निकलते थे, तो जहाँ भूत बताते