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[10.7] यमराज के भय के सामने शोध
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वृद्ध थे और वे बहुत बीमार थे। वे भी अंतिम स्थिति में थे और शरीर छूटने की तैयारियाँ थी, तो उनकी तबियत बहुत ही खराब हो गई थी।
___ इसलिए बारी-बारी से रात को वहाँ सब सो जाते थे, उन्हें दवाई वगैरह देने के लिए। आसपास वाले सभी लोग जागते थे, रात को उनके पास बैठते थे सभी, और रात को वहाँ सो जाते थे। इस तरह ज़रा हेल्प करते थे। उनकी सेवा में मैं बैठा रहता था। दूसरे बड़ी उम्र वाले लोग सेवा करते थे लेकिन मैं जितना हो सके उतनी सेवा करता था। पैर दबाता था, पैरों पर हाथ फेरता रहता था। वहाँ पर सभी लोग देखने आते थे। मैं वहाँ बैठता था।
एक बार रविवार के दिन किसी एक घर में से लोग वहाँ नहीं आ सके थे। सब लोग यों ही थके हुए बैठे थे। तब मैंने सब से कहा कि 'भाई आज रविवार है और मेरी छुट्टी है। मैं चाचा के साथ बैलूंगा। आज आप सब यहाँ पर मत सोईएगा, मैं सो जाऊँगा चाचा के पास। आप सब घर जाकर सो जाओ, रात को मैं इन्हें दवाई दे दूंगा। मैं चाचा की सेवा में रहूँगा'। तब उन्होंने पूछा, 'तू पूरी रात सो पाएगा?' मैंने कहा, 'हाँ। रात को अगर नींद आएगी तो फिर सो भी जाऊँगा लेकिन मैं थोड़ी देर, बारह-एक बजे तक बैलूंगा ताकि चाचा को ठीक लगे'। तब सब ने कहा, 'ठीक है'।
कुत्ते को रोते देखकर हुआ भ्रम, 'यमराज आए'
तब सब लोग सोने चले गए और मैं वहीं रह गया। उसके बाद चाचा को दवाई दी और मैं बैठा रहा। चाचा जरा आराम करने लगे। तब दस, साढ़े दस बजे होंगे तो चाचा की तो आँखें मिंच गईं। चाचा तो सो गए आराम से दवाई पीकर और मैं तो जाग रहा था। अब जवान लड़का कितनी देर तक जाग सकता था? इसलिए ग्यारह बजे मुझे नींद आने लगी, तब भी मैं तो रात के बारह बजे तक बैठा रहा।
फिर मैंने सोने का प्रयत्न किया। सोने की तैयारी कर रहा था तभी किसी जगह एक कुत्ता रोया, बहुत दूर। कुत्ता खूब रोया। तो मैंने वह सुना।