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[10.7] यमराज के भय के सामने शोध
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श्रद्धा बैठ गई मुझे। यदि श्रद्धा नहीं बैठी होती तो कोई परेशानी नहीं थी। श्रद्धा नहीं बैठती तो कोई असर नहीं होता। अतः मुझे जब याद आया कि ये सब कह रहे थे कि जब कुत्ता रोता है तब यमराज आते हैं। कुत्ता रोया, यह ज्ञान उससे मिलता-जुलता है! चाचा को तो ले जाएँगे लेकिन मुझे क्या करेंगे उसका डर
था
फिर मुझे वहम हो गया कि आज वास्तव में यहाँ कहीं पर यमराज आ गए हैं। अभी तो ये मरे नहीं हैं बीमार ही हुए हैं तो उन्हें लेने आएँगे या जो स्वस्थ है उसे? बीमार की सेवा में बैठा था और उस तरफ कुत्ता रोया। मैंने कहा, 'अरे, आ गया यह तो'। चाचा तो सो गए हैं बेचारे, लेकिन यह इंसान चाचा को ले जाएगा। आज सुबह ही ऐसा लगा था मुझे। क्या लगा? इसलिए अंदर यह दखल होने लगी कि, 'इन चाचा को सुबह तक ले जाएँगे। यहाँ तक आए हैं तो इन चाचा को लिए बगैर जाएँगे नहीं'। ये सुबह चले जाएँगे'।और वे चाचा हमारे रिश्तेदार थे, इसलिए मुझे चिंता होने लगी। बोलो! क्या-क्या नहीं हुआ होगा मुझे ?
प्रश्नकर्ता : सभी हुआ होगा न!
दादाश्री : फिर मुझे मन में ऐसा लगा कि 'यमराज चाचा को लेने आएँ तो हमें क्या करेंगे? हम उस क्षण क्या करेंगे?' अत: मुझे वैसी घबराहट हो गई। डर घुस गया कि हमें भी एक लगाता हुआ जाएगा। अब मैं तो कम उम्र वाला बच्चा था, तेरह साल का, तो फिर डर लगता न, यमराज का? अरे! बड़े-बड़े दाँत दिखाता है, तो वह अगर हमें ज़रा सी एक चपत लगा देगा तो हमारी क्या दशा होगी? भय के ज्ञान के सामने दूसरा ज्ञान सेट किया जाए तभी भय
जाता है अब भय निकले किस तरह से? जब तक इस ज्ञान के सामने दूसरा कोई ज्ञान नहीं आए तब तक यह भय नहीं निकल सकता। जिस ज्ञान से भय हुआ जब तक उसका विरोधी ज्ञान न हो तब तक भय नहीं