________________
[10.6] विविध प्रकार के भय के सामने...
395
दादाश्री : अगर सही है तभी निकलेगा न, नहीं तो कैसे निकलेगा? जिसने डर देखा ही नहीं है और वे सारे डर गलत ही हैं, ऐसा प्रमाणित हो गया था मेरे सामने। इन भूतों की बातें भी। भूत हैं ज़रूर, नहीं हैं ऐसा नहीं है लेकिन भूत ऐसा नहीं होता। ये जो कल्पना के भूत हैं, वे मार डालते हैं। अन्य और कुछ भी नहीं मारता। सचमुच के भूत तो हमें परेशान ही कर देते हैं, तेल निकाल दें और वे इस तरह प्रत्यक्ष आँखों से दिखाई देते हैं। वे भूत तो दिन दहाड़े दिखाई देते हैं। कोई जानवर का रूप लेकर आता है, कोई मनुष्य का रूप लेकर आता है, बड़े दैत्य का रूप लेकर आता है!
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : और डरा देते हैं। लेकिन मैंने तो ये ऐसे भूत देखे थे। वे गलत थे। ये सब मेरे खुद के देखे हुए भूत थे। फिर डिसाइड किया कि ये सभी बातें गलत हैं।
जिस अनुसार हमारी कल्पना होती है। उसी अनुसार दिखाई देता है। कल्पना है न?
प्रश्नकर्ता : कल्पना है। हाँ, इसलिए भाषा का प्रयोग भी ऐसा ही हुआ कि इसने बहुत भूत खड़े किए हैं।
दादाश्री : हाँ, बस! वे कल्पना के भूत।